Wednesday, December 26, 2012

मुझे जिस बात का डर था लो वही बात हो गयी
वो मुस्करा दिया, मेरी शिकायत न जाने कहां खो गयी
ये सताने का हुनर है तुम बाज़ी जीत पाओ ये मुमक़िन नहीं
तारीख़ गवाह है, यहाँ दो-चार चालों में सब को मात हो गयी

Tuesday, December 18, 2012

किसी के ख़त छोड़ आये पुराने घर में
हम आ गये, ज़िंदग़ी छोड़ आये पुराने घर में
यूँ हैरत से न देखो  मुझे दोस्तो  -2
मैं वही हूं, बस जवानी छोड़ आये पुराने घर में

Saturday, December 15, 2012

पी के न बहकने की कसम मैंने निभा दी है साक़ी
भटके हुए शेख को मयखाने की डगर दिखा दी है साक़ी
रात भर मैं सो न सका जिस एक बात को ले कर
सुबह होते होते तुमने दुनियां को बता दी है साक़ी

Saturday, December 1, 2012


मैं अकेला कब था इस रहगुजर में

मेरी बरबादियों का गवाह तू भी है

Tuesday, November 27, 2012




'डिमोकिरेसी महाठगिनी हम जानि
अमीर-गरीब फाँस लिए कर डोले बोले मधुरी वानी
गरीब को गरीबी हटाओ कह ले बैठी
अमीर के इंडिया-शाइनी
बेघर के स्लम बन बैठी लैंड-लॉर्डन के आदर्श निरमानी
काहू के एफ.डी.आई. काहू के खेतन में नहीं पानी
सूखा हो या हो बाढ़ याकू दोनों रिझानि
कहें कबीर सुनो भई साधो ! उधर 'गॉड करी' कोलावरी डी इधर 'कलमा डी'  

Saturday, November 24, 2012


तू रुसवा न हो कहीं सो लब मुस्कराते रहे उम्र भर

दिल रोये तेरी याद में , तो क्या करे कोई


तुझ पे मरना खुफिया ख्वाहिश मेरी

बेनक़ाब आये हो, अब क़त्ले-आम क्या करे कोई 


सब हज़ार बार पूछा किये, हम हज़ार बार इंक़ार कीये

दुनियां आंखों में मुहब्बत पढ़ ले तो क्या करे कोई


एक उम्र लगा के अपने वज़ूद को मुहब्बत किया था  

वफा का चलन ही उठ गया, इस दिल-ए-नाकाम का क्या करे कोई  

इक लम्हे को भी जिसे अलग होना मंजूर न था
आज भरी दुनियां में मुझे तन्हा छोड़ गया

कैसे यक़ीं होगा ज़माने में अब किसी के वादे का
दो जिस्म एक जां कहता था वही तन्हा छोड़ गया

Wednesday, November 14, 2012


इस दिल की बेताबी, सम्भाले न सम्भली है 
जब-जब याद आई वो चाँद सी लड़की दिल्ली की
 

अचानक मुझे रूबरू पा वो मुस्करा के बोले
जनाब बहुत दूर तक ले गये आप याद दिल्ली की
 

सुन के अमिताभ और शाहरुख के किस्से
यूँ लगा मुम्बई भी गोया अब तो हो गयी दिल्ली की
 

भले तबाह हुये, बरबाद हुये हर बार उठ के चल पड़े
मुफलिस हम नहीं, हमारे पास है दौलत दिल्ली की 
 

कितनी बार लुटी है उसे खुद भी याद नहीं
पर दिल से न जा सकी ज़िंदादिली दिल्ली की  

Monday, November 12, 2012


तेरा चेहरा मेरे हाथों में था

एक सूरज मेरी हथेली में था

कल रात तेरी याद आई

कितना उजाला हवेली में था

Sunday, November 4, 2012

मेरे ही हिस्से में क्यों कर सारा दर्द आया
वो भी तो था शामिल मेरी बरबादियों में.

Tuesday, October 30, 2012


किस करवट भी सोऊँ ज़ख्मों में दर्द होता है

जहां दिल था कभी वहां टाँकों में दर्द होता है

ये कहां ले आयी मुहब्बत तेरी ?

हर शाम जब तक रोऊँ नहीं आंखों में दर्द होता है

वो जो ज़िंदग़ी बताता फिरता है मुझे

तुम्हें क्या पता रोज़ कितनी मौत मारा करता है मुझे

बात न करने की कसम उसने ज़िंदगी भर निभाई

मेरी मौत से पहले उसे मेरी याद ही न आई  

नज़ाक़त से जरा भर सरकाया मेरे क़फन को,

कुछ इस तरह  हुई  मेरी रस्मे मुंह दिखाई

Saturday, October 27, 2012


मौसम कोई हो, ज़ख्मों में दर्द सा रहता है

जहाँ दिल था कभी, टाँकों में दर्द सा रहता है

ये किस मुक़ाम पर ले आयी मुहब्बत तेरी
 
जब तक रो न लूं, आँखों में दर्द सा रहता है  

Monday, October 8, 2012

जो तुम्हारी आँखें बोलती हैं
मेरे लब बोल नहीं पाते
मेरे ख्वाब भी तेरी अदा सीख गये
हमेशा जाने की जल्दी और बुलाने पे कभी नहीं आते

Wednesday, October 3, 2012


कहने को वो हर बार घड़ी दो घड़ी को रूठते हैं

पर हर बार एक उम्र लग जाती है उन्हें मनाने में

 

Thursday, September 27, 2012


मुहब्बत की है तो शिकायत कैसी ?

शिकायत की है तो मुहब्बत कैसी ?

 

मुहब्बत नहीं तो शिकायत कैसी !

शिकायत नहीं तो मुहब्बत कैसी !

Wednesday, September 19, 2012


कब ये मुहब्बत  करने की बेबसी जायेगी

यारो ! जाते जाते ही होटों से हँसी जायेगी

एक घड़ी को देखा था मैंने उन्हें ख्वाब में

ज़िंदग़ी भर न इन आंखों की मदहोशी जायेगी

 

हास्य

कनस्तर भर भर शक्तिप्रास खाया है

तब कहीं जाकर ये होश आया है

सब फिज़ूल, सब पैसा जाया है

किसी को न आनी थी, न आई

बेचने वाले को सारी शक्ति सारा पैसा आया है

 

मुझे पहले से ही था ये धड़का

फिर भी बाल्टी भर भर डेडोरेंट छिड़का

पता नहीं क्या कमी, कहाँ ग़लतियां हो गयीं

लड़की तो एक नहीं आई, मक्खियाँ-मक्खियाँ हो गईं

Thursday, September 13, 2012


यक़ीनन वो तुम्हारा खत रहा होगा 

रक़ीब ने आंखों से लगा कर चूमा था उसे

Friday, September 7, 2012

नाम बदलने से भला 
कहीं नसीब बदले हैं आजतक
हाँ नसीब बदलते ही 
नाम जरूर बदल जाते हैं

Sunday, September 2, 2012


बदले तो बदले पर कोई

ऐसे भी न बदले

कि रिश्ते  नज़र आने लगें बदले-बदले

बदले तो जब जी चाहे बदले कभी घर, कभी गली, कभी शहर

पर भला कोई यूँ भी न बदले कि

अपने चाहने वालों से लेने लगें यूं  बदले

भले चंदा बदले, सूरज बदले

बदले मेरी बला से दुनियां बदले

हम तो वसीयत में लिख चले

लाख ज़माने कहां से कहां बदले

बदले तो न बदले एक मेरे महबूब कभी तुम न बदले

Saturday, August 4, 2012


ख्वाब  सी नाजुक है वो

छूने से डर लगता है

गो मेरी महबूब है वो

छूने से डर लगता है

प्यार के महज़ ज़िक़्र से

अपने रुखसार छुपा ले है वो

ऐसे लाला-ए-रुख को

छूने से डर लगता है

*********



हर बार उसके दर से

ये सोच-सोच भारी मन से लौटा हूं मैं

कहते हैं मंदिर को

घर नहीं बनाया करते


Thursday, July 19, 2012


ये सच है या कि सपना कोई
सपना सा लगता है !
सपने का सच होना भी
अब एक सपना सा लगता है

कहीं उम्र भर साथ रह के भी
अजनबी के अजनबी
देखते-देखते कहीं
एक अजनबी अपना सा लगता है

किसी नज़र की गुजर न थी
हवा भी परायी थी
क्या हुआ है ये कि
वो छूए है तो दवा सा लगता है

ये कैसी बेखुदी तारी है मुझ पर
कल शाम मिला था मैं तुम से
आज तुमसे बिछुड़े
ज़माना सा लगता है

झील सी आँखें, लब गुलाब तेरे
कितने ही एहतियात क्यूँ न हो
तुझे छूते  हुए अपनी कसम
डर सा लगता है

ये सच है या कि सपना कोई
सपना सा लगता है !
सपने का सच होना भी
अब एक सपना सा लगता है

Thursday, July 5, 2012

GOD's OWN !

When did we meet?
But when did we ever part?
We ve travelled this way
Birth after birth... In vain
Oblivious of each other
Soul craves for that final embrace
The Day of Judgment
Yes the Day of Deliverance
To be one with her Maker
Thirst eternally unquenched
Rebirth after rebirth
Journeying back to previous birth
To birth earlier
And prior to that
We were there at The Eden
I had promised myself
I shall locate you
Soul needs to reside
Soul stirs
Recognises its ilk
It is divine intervention
Identify each other instantly
To be one in Unison
It has no hands
Yet feels far more palpably
Soul can smell its dwelling
A slight sly... Slur of denial
A trifle flickering consent
Here today, gone tomorrow
Seperated by centuries of
Aimless wanderings in the Wild of life
Condemned to be in the Purgatory
We know as The World
We had been here so many times
Familiar yet stranger
One more time...Again and yet again
Let me hold the bright sun
In my palms
Comb...Part...Caress with my fingers
Your over-oiled hair
Hair by hair
Allow me to enter those soulful eyes
Plant a gentle kiss on your forehead
And I shall recognize you
A million years from now
For the earth moves on its axis too
The World changeth
Changeth faster than mortal eyes can register
Don’t let me fall
I’m the solitary tear in your eye
Frozen since time immemorial
Don’t let me fall
For its hot sand all over
You let me fall now
I’ll be lost forever in the burning sand
Impossible to retrieve
The soul I met
Last month...Last year or was it
Previous birth
I can feel those vibes
The ‘Password’ we were
Familiar with worked
Opened up the whole new World
Our World to us
Enriching...Fulfilling
Making us complete
Elicits the best in us
Behoves us to believe
In our dreams
In ourselves
Step in step alongside
Helps us translate what is
Encoded in our psyche
Its strange thing
To wish to die
But I do
If only, I could be one
With you
My soul mate!

Friday, April 20, 2012

घड़ी

अभी कुछ साल पहले तक लोग आपसे

गली में, राहों में, बाज़ार में, चौराहों पे

अक्सर वक़्त पूछ लिया करते थे

आप खुशी खुशी बताते थे, आप पर थी घड़ी

तब कम लोगों पर हुआ करती थी‌ घड़ी

फिर हमनें तरक्की करी और खूब तरक्की की

एक-एक घर में हो गयीं दर्ज़नों घड़ी

बड़े-बड़े डायल वाली, खूबसूरत घड़ी

एक से एक महंगी घड़ी

दिन, तारीख, अमावस, पूर्णमासी बताने वाली घड़ी

हीरे-सोने से जड़ी घड़ी

अब सस्ती हो गयीं घड़ी

किलो के हिसाब से फुटपाथ पर बिकने लगी घड़ी

ज़िंदग़ी की और जिन्स की तरह   

आपके मूड, आपकी ड्रेस और पार्टी थीम से

मैचिंग हो गयी घड़ी

अब लोग आपसे सड़क चलते वक़्त क्या हुआ है ?’

नहीं पूछते

अब किसी के पास इतना वक़्त नहीं कि आपसे

वक़्त पूछ कर अपना वक़्त बरबाद करे

उसकी कार में है घड़ी

उसके मोबायल मे है घड़ी

उसके लैपटॉप में है घड़ी

उसके पैन में है घड़ी

उसके टी.वी. के हर चैनल में घड़ी

हर कमरे में घड़ी

ये आई है कैसी घड़ी

अब हैं हमारे-तुम्हारे हरेक के पास ढेर सारी घड़ी

नहीं है तो बस अपने लिये, न अपनों के लिये

दो- चार घड़ी
उम्र काट दी हमनें इसी हसरत में
वो मिलने आयेंगे पहली फुरसत में
उन्हें फुरसत न मिली, हमारी चाहत न मिटी
अनबुझ प्यास आयी मेरी किस्मत में

Thursday, April 5, 2012

इक तरफा मुहब्बत में कोई हम सा न पाओगे

हमने कुल ज़माने से मुहब्बत की है

**************

अब जीने के यही कुछ असबाब हैं

मेरे सिरहाने तेरे कुछ ख्वाब हैं

****************

गँवा के खुद को, तुझे पाया है

तब जाकर कहीं होश आया है

क्या कुफ़्र ? और क्या है इबादत ?

ये कब कोई जान पाया है ?

तुम महफ़ूज रहो अपनी

रिवाज़ों की दुनिया में

यादें, दर्द, आँसू, ज़ख्म

जीने को मेरे पास बहुत सरमाया है


Wednesday, March 14, 2012


ऐ नामावर ! नाम तक तो ठीक था
तूने क्यों इस क़ातिल को मेरा पता बता दिया
सोया था दर्दे इश्क़, ज़हन के किसी कोने में
तुमने आके क्यों इसे जगा दिया
तुम्हें जानने से पहले जाना न था दर्द मैंने
मेरे मेहरबां ये कैसा मर्ज़ लगा दिया
मेरी इसरारे वफा से जब आ गये आज़िज़ वो
उन्होने मुझे ही बेवफा बता दिया

Tuesday, March 13, 2012

मेरे हिस्से में तो
उनकी बेरुखी भी न आई
खुशकिस्मत हैं वो जिनकी
मुहब्बत को ठुकरा दिया तूने
सांसें सीमित हैं
धड़कनें हैं बहुत अल्प
तिस पर जानलेवा
तुम्हारा ये दृढ़संकल्प

तुम्हें निमंत्रित करने की
लुभाने की चाह मन में
अनगिनत बार उठी है
मैं चाह को भी तेरी तरह
चाह कर ही रह जाता हूं ...
पीर हृदय में बिन बुलाई आ बसती है
अब तो पीर ही मुझे

लुभा-लुभा के ताना कसती है
किसी और को न बुलाना
ये दिल तुम्हारा अब मेरी बस्ती है

Monday, February 20, 2012

गुम हो गए शख्स इख़लाक और आबरू वाले
अब गुलाब नज़र नही आते खुशबू वाले

Saturday, January 21, 2012

मज़दूर



मज़दूर किसी गम में
कभी काम बंद नही करता
काम बंद करने का मतलब
उसको मालूम है
उसको मालूम है काम बंद
करने का मतलब है
उसका और उसके कुटुम्ब का फाक़ा
और चार दिन के फाक़े का मतलब है
परचून की उधारी
उधारी ?
उधारी का मतलब है
महाज़न की देनदारी
और देनदारी का मतलब है
परबतिया..साबित्तरी और
नन्ही मुनिया की लाचारी
दिन में बंधुआ मज़दूरी और
और रात में ‘खिलवाड़ी’
जनम जनम की ख्वारी ..
ख्वारी और ख्वारी….
मज़दूर किसी गम में कभी
काम बंद नही करता
काम बंद करने का मतलब उसे मालूम
है