Tuesday, May 12, 2020

देख इतना संगदिल भी न था क़ातिल
छांव में रख गया मार के मुझे
तुम जालिम कह नाहक बदनाम न करो
उसने पानी भी पिलाया मार के मुझे
जुर्म मेरा मैं हँस दिया उसकी बात पर
वो मंद मंद मुस्कराया मार के मुझे
वो बादशाह है पर मेहरबां है बहुत
इमदाद का ऐलान भी किया मार के मुझे
जो उसे बेदर्द कहते हैं दुश्मन रहे होंगे
वो जार-जार खुल के रोया मार के मुझे