Monday, December 14, 2015

कभी साथ न छोड़ने की कसम. .उठाई थी
बदनसीबी बड़ी दूर तलक साथ .... आई थी

Friday, September 18, 2015



सयानों ने पीढ़ी दर पीढ़ी समझाया
“ जा तो रहे हो उस के नगर
किसी चीज़ को भी छूना मत ”
बस यहीं मात खा गये
देखते देखते कहाँ से कहाँ आ गये
हर नई पीढ़ी आदम की गलती दोहराती है
ये हमारे डी.एन ए. में है
“ मैं अपनी गलती खुद करूंगा/करूंगी “
ये ज़िद हर इंसान की साईकी में है

Monday, August 24, 2015

तुम्हें पाने का सपना सच क्यों न हुआ ?
सुबह-सुबह का था, फिर सच क्यों न हुआ ?
सुनते हैं ज़िंदगी हर कदम जुआ है !

महज़ एक बाजी जीतने का सपना सच क्यों न हुआ

Saturday, July 18, 2015

सवालों के जवाब तलाशती
हातिम सी उलझी ज़िंदगी
शीशे के शहर में भटकती
पत्थर की राजकुमारी सी ज़िंदगी
.

यूँ तो हर कहानी के आखिर में
शहज़ादे को मिलती रही शहज़ादी
न जाने क़िले के किस तहखाने में
हमेशा को क़ैद ज़िंदगी
.

तिलिस्म दुनियां के इतने आसां कहाँ ऐ दोस्त !
लम्हा लम्हा धूप-छाँव
लम्हा लम्हा आँसू-मुस्कान
मौत के कुँए में रोज़ क़रतब दिखाती ज़िंदगी

Thursday, July 16, 2015

aap ke lliye


My poetry rendition in RSC, Vadodara, now renamed NAIR year 2005-6

Tuesday, May 5, 2015

जादूगर का कहा " पलट के मत देखना " सच निकला
मैं पत्थर का हो गया जिस घड़ी तेरे कूँचे से निकला


तेरी मुहब्बत अज़ब शै रही जानम
न जीने देती है, न मेरा दम निकला 


तू ही बता कैसे यक़ीं करूं कि तेरी जुस्तजू तलाशे ज़िंदगी है
देखता हूं तेरी गली को जो निकला बांधे सर पे क़फन निकला
जादूगर का कहा 'पलट के मत देखना' सच हो गया.
मैं तेरे कूँचे से निकला और पत्थर का हो गया.



तेरी मुहब्बत भी क्या अज़ब शै रही जानम.. 
तुम दिख गए मर-मिटा ...तुम दिख गए जी उठा

तेरी जुस्तजू ! यक़ीनन तलाशे ज़िंदगी है
नज़रिया,
दिल, दर्द सभी कुछ तो जवां हो गया

Sunday, January 11, 2015

अच्छे दिन आने वाले हैं



सालों बाद बीवी बना रही है

मायके जाने का प्लान

अच्छे दिन आने वाले हैं



टिकट कनफर्म कराने को

मैंने लड़ा दी है जान

अच्छे दिन आने वाले हैं



कब किसके यहाँ है पार्टी-कॉकटेल

कलैंडर पर अभी से लगा लिये हैं निशान

अच्छे दिन आने वाले हैं



केबलवाला चुपचाप बता के गया था जो फिल्में


मैंने खरीद लिया है ‘इकॉनमी प्लान’

अच्छे दिन आने वाले हैं



कोई नहीं टोकने वाला

फिर से रोज पहननी है पजामे के ऊपर बनियान

अच्छे दिन आने वाले हैं



‘पानी बचाओ’ आंदोलन का हूं मैं कट्टर समर्थक

नहाने के केंसल सब प्रोग्राम

अच्छे  दिन  आने  वाले  हैं



सोफा, बैड, चेयर

सब पर बिखरी मिलेंगी पेंट-कमीजें एक समान

अच्छे दिन आने वाले हैं



फेंक देनी हैं मैंने सब शीशियां शुगर-फ्री की

खुल जायेगी घर में ही मिठाई की दूकान

अच्छे दिन आने वाले हैं



हर सेन्टेंस में ग़लती निकालने वाली

बेटी भी जा रही है साथ

मन-मर्ज़ी से होगा अब अंग्रेजी उच्चारन

अच्छे दिन आने वाले हैं