Tuesday, March 26, 2013

सियासतदां मरते गये
मक़बरे बनते गये
और एक दिन मुल्क़ का मुल्क़
क़ब्रिस्तां में तब्दील हो गया

Tuesday, March 12, 2013

सुर्खी है आज हर एक अखबार में
आदमी का भाव गिर गया बाज़ार में
क़ब्र से लाशें चोरी होने लगीं
मुर्दे भी कहां महफूज़ रहे मज़ार में

Saturday, March 9, 2013

हमारे केवल चश्मे ‘प्रोग्रेसिव’ हैं
चश्मे के पीछे आंख वही पुरानी है
यूं तो घर में फिल्टर है, आर.ओ. है
पर आंख में वही गंदा पानी है

Wednesday, March 6, 2013





मुझे वक़्त नहीं लगता किसी का बन जाने में

तुम्हें देर नहीं लगती किसी को अपना बनाने में
प्यार में दिखाई नहीं देता सब कहने की बातें हैं
मुहब्बत में है लज़्ज़त बेशुमार अंधा बन जाने में



Sunday, March 3, 2013



बहुत शौक़ था इन आंखो को रोशनी का
लो जलता हुआ अपना आशियां देख लो
ज़िंदगी आने का वादा कर कहां रुखसत हुई
कैसे होती हैं इंतज़ार में आंख पत्थर देख लो
जिस उम्मीद में थमी थी सांस लो वो भी खत्म हुई
नामावर कसम खा सारे खत वापस दे गया
ऐसा कोई पता ही नहीं शहर में
यक़ीं न हो तो खुद जा कर देख लो


तुम्ही कहो अब कैसे आयें लब पर गीत प्यार के
मुहब्बत की बाज़ी जीती मैंने खुद को हार के


सोने के धोखे में पीतल ले आए दोस्तो !
कभी हमसफ़र, कभी रहनुमा, कभी महबूब
दुश्मन कितनी सूरतें बदल के आए दोस्तो !
मैं उम्र भर उसका इंतज़ार करता रह गया
वो जनाज़े पे भी दबे पाँव संभल के आए दोस्तो !
सोने के धोखे में हम तो पीतल ले आए दोस्तो !



मतलबी मुझे कहता है वो शीरीं-लब  
 किन लबों से करूं उसकी मुखालफत अब