Friday, October 30, 2020

 हम तो भूल जाने लगे थे

खोई दुनियां में आने लगे थे

अभी लोगों को पहचानने ही लगे थे

कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया

खुद से मुलाकात हो रही थी
दिन-तारीख की बात हो रही थी
घर के आईने से नज़र चार हो रही थी
कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया

ज़िस्म को भूख की गिज़ा लगने लगी थी
आँख को सूरज की आदत पड़ने लगी थी
दीगर इलाकोंमें आमदोरफ्त बढ़ने लगीथी
कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया

गज़ल का दीवान अभी ट्रंक में रखा ही था
रोजगार-ए-मुहब्बत का नफा नुकसान परखा ही था
अभी मरहमे दिल का नुस्खा सयाने ने फूँका ही था
कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया