Sunday, July 18, 2010

काली घटाओ ..

काली घटाओ ..

उड़ उड़ के जाओ

पी हैं कहाँ

उनको यहाँ

लेकर के आओ

काली घटाओ...

मेघा तुम रहने दो अभी तो

पी को जरा आ लेने दो

फिर घुमड़ घुमड़ के आओ

काली घटाओ ..

सनम को आ लेने दो

नयनों से रूप रस पी लेने दो

फिर तुम सखि

मन भर के गाओ

काली घटाओ ..

नयनों के रस्ते करने दो बातें

पी के बिना तुम क्या जानो

कैसे गुजारीं मैंने वो रातें

अब पी तक मेरा संदेशा पहुंचाओ

काली घटाओ ...

उड़ उड़ के जाओ .

ऐ बादल

ऐ बादल ! उमड़ घुमड़ के तू गाये

कुछ भी हमारी समझ में न आए

तेरे अजब निराले आकार ऐसे

लगता है बहुत दुखी है जैसे

तेरे तन-मन लगता है चोट हैं खाये

तेरी हस्ती के आगे रवि भी मुँह छुपाए

ऐ बादल उमड़-घुमड़ के तू गाये

पावन के झोंकों पर हो कर सवार

तू ले जाता है देश देश बहार

धरती पर कोई तेरी पीड़ा समझ न पाये

बच्चे बूढ़े किसान खुश हैं

हर्ष में पपीहा भी चिल्लाए

ऐ बादल उमड़- घुमड़ के तू गाये

रो रो के जब तू अपनी व्यथा सुनाता है

आदमी बारिश कह तेरा उपहास बनाता है

तुझे यूँ विरह से व्याकुल देख

क्षण भर को विद्युत तुझसे मिलने आए

ऐ बादल उमड़-घुमड़ के तू गाये

मानव सीखे तुझसे दया और उपकार

तेरे अश्रु भी करते कितना परोपकार

पृथ्वी पर कृषक, चातक, जन-जन को

तेरा रुदन भी जीवन बन जाये

ऐ बादल उमड़-घुमड़ के तू गाये

कुछ भी हमारी समझ में न आए

Monday, July 12, 2010

पंखुरियां गुलाब की


किसी भी राह की मंजिल नहीं यहाँ
किस पथ पर अपने पाँव बढाऊँ
यहाँ का चेतन भी जड़ हो गया है
अपना दर्द सुनाने किसे जगाऊँ
कोई नहीं आराध्य किसके आगे
अपने को छोटा बताऊँ
कहा बड़ों ने सन्मार्ग पर मंजिल मिलेगी
किन्तु पाया मैंने कु-पथ पर लक्ष्य को समीप
जिसको भी सुनाई मैंने अपने व्यथा
सामने मेरे दुःख जता बाद मैं हँसा
इसलिए मैं जड़ से कहता हूँ
अपने आत्मकथा
वो जो जगत मैं है आराध्य
मैं नहीं उसकी भक्ति को बाध्य
कैसे मैं विश्वास करूँ
मैं साधन हूँ और वो साध्य
उनके आदर्श नहीं मेरे अनुकरण के लिए
उनकी भावना नहीं मेरे वरण के लिए
मेरे पास स्थान नहीं
उनके विचारों की शरण के लिए
फिर किसकी करूँ निंदा
किसकी महिमा गाऊँ
किसी भी राह की मंजिल नहीं यहाँ
किस पथ पर अपने पाऊँ बढाऊँ



>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>


ये ज़िन्दगी का सफ़र तय ना हो पाता
अगर तेरे गेसुओं का रंगीं साया ना होता.
ग़म के शोले कब के खाक कर गये होते
अगर तेरी शबनमी मुहब्बत का झोंका आया ना होता.
ये जवानी का कारवां राह में ही भटक जाता
अगर तेरी गली को मुड़ा ना होता.
कौन मुझे पहचानता गर
मेरे साथ तेरा नाम जुड़ा ना होता.



........




अब भी कभी-कभी
नितांत जीवन की सूनी राह पर
मैं चलते-चलते यूँ ही अक्सर
रुक जाया करता हूँ
क्यूँ की मुझे लगता है
अतीत पुकार रहा है
भविष्य उदासीन है
और वर्तमान धिक्कार रहा है.


..........



क्या कभी महसूस किया है दर्द
तुम्हारे दिल की सतह ने.
क्या कभी तुम्हें सताया है
किसी राही की विरह ने.
यदि नहीं तो क्या दर्द समझ पाओगे
या सुन के मेरी कहानी
तुम भी औरों की तरह
बस हँस जाओगे.



........



वासना थी तीव्रतम जब
ले लिया था संन्यास मैंने.
प्यार का समय था तुमसे जब
खो दिया था विश्वास मैंने.
धरती का आधार तुम दे ना सके
ठुकरा दिया बुलंदियों का आकाश मैंने
तृप्त कर ना सके तुम मेरी क्षधा
बुझा ली अपना ही खून पी के प्यास मैंने.
वासना थी तीव्रतम ...
नहीं था दिल का लगाना कोई दुष्कर कार्य
क्यों फिर दूर रहना ही रहा हमारे बीच अनिवार्य
तुम रहे अन्यत्र व्यस्त
मैं भी हो गया अकेला रहने का अभ्यस्त
और गंवा दिया व्यर्थ जवानी का अवकाश मैंने.
वासना थी तीव्रतम जब
ले लिया था संन्यास मैंने .



>>>>>>>>>>>>>



मुझे इंतज़ार है उस दिन का
मेरे बुरे कर्म भी हो जायेंगे जब क्षम्य
पाप मेरे बन जायेंगे पुण्य
छोटे-बड़े अपने-पराये सब रोयेंगे
मुझे इंतज़ार है उस दिन का
जब शत्रु भी करेगा मेरी प्रशंसा
हाँ वही वो मेरी मौत का दिन
मुझे इंतज़ार है उस दिन का
और जब तक वो दिन नहीं आता
तब तक लोग ढूंढते रहे हैं और रहेंगे
मेरे अच्छे कामों में भी बुराई
मेरे पुण्य में मेरा स्वार्थ
छोटे मजाक बनाते रहेंगे
बड़े हँसते रहेंगे मेरे सयानेपन पर
पराये ? पराये तो पराये हैं ही
शत्रु की तो बात ही क्या
मित्र भी करते रहेंगे बुराई
उस दिन तक
हाँ वही मेरे मौत के दिन तक
मुझे इंतज़ार है उस दिन का
.........
हृदय ही जीवन का अवलंबन नहीं एक
कर्त्तव्य भावना से बड़ा,
प्रेम से बढ कर है विवेक
देख आकर्षक एक किनारा,
भूला मांझी अपना गंतव्य
बह गया लहरों में एक आस लेकर दिव्य
राही भटक जाता अपनी राह देख मुस्कान की छाँव
स्वयं बाँध लेता रिश्तों की बेड़ियों से अपने पाँव
डोल गया मधुकर का मन देख नीरज के बाण
ना कर सका लोभ का संवरण,
खो बैठा अपने प्राण
ओ मानव पुनः सोच आँखें मल के देख
हृदय ही तो ...
चाह था पतंगे ने दीये के प्रकाश को
जब तन ही जल गया तो
कहाँ ले जाये मन की प्यास को
जुगनू ढूंढ रहा किसे इस घने अन्धकार में
किसकी चाह चाह कर भी ना छुपा प़ा रहा
पपीहा अपनी पुकार में
विरह का गीत क्यों गुनगुना रही हर आवाज
वेदना में घुला हुआ क्यों है ये संसार
क्यों नहीं तोड़ पाता मनुष्य बंधन प्रत्येक
हृदय ही तो जीवन का अवलंबन नहीं एक
कर्तव्य भावना से बड़ा प्रेम से बढ कर है विवेक



....




मृत्यु और जीवन में हुई आँख मिचोली
मृत्यु चोर बनी, जीवन पृथ्वी के वन में
सुख दुःख के झुरमुट में दुबक गया
ये लुका छिपी चलती रही
साठ बरस...सत्तर ..अस्सी बरस
और एक दिन मृत्यु ने
जीवन को ढूंढ ही लिया .



...........




एक तुम्हारा विचार मन में आने से
मेरी भावनाओं का आकाश बढ़ने लगा है
एक तुम्हारे आने से सच मानो
मेरे जीवन में प्रकाश बढ़ने लगा है
एक तुम जो भरोसा करने लगे हो मुझ पर
सच मानो तब से मुझे अपने पर विश्वास बढ़ने लगा है .



..........



कह दो सनम से अब दिल की बस्ती
वो कहीं और बसायें
सनमखाने में मयखाने की याद आती है
मयखाने में सनमखाने की रंगीनी बुलाती है
समझ नहीं आता ऐसे में हम कहाँ जाएँ
कह दो सनम से ..
दिल का भी क्या शोख अज़ब चलन है
नए नए गुलिस्तां मांगता हरदम है
कोई उसे समझाए रोज रोज नए गुल
कहाँ से हम लायें
कह दो सनम से ...
ये रोज रोज की मीना-ओ-सुराही ठीक नहीं
कह दो उनसे आज हमें
चश्म-ऐ-साक़ी से पिलायें
कह दो सनम से ..


........




दिल का सब हाल हम उनसे कह बैठे
जिन्होंने हर बात हमसे छिपाई
सच मैं भी था,सच वो भी थे
फिर क्यों हरेक सच पर देते थे वो सफाई
कुछ ऐसा भी गुजरा है मेरे दिल के साथ
ये उनकी दोस्ती का दम भरता रहा
जिन्होंने आखिरी दम तक दुश्मनी निभाई .



.....



मैंने माँगा था टुकड़ा,तुमसे ढँकने को तन
तुमने सर से पाँव तक ढँक दिया,मुझे देके क़फ़न
चाहा था रोशनी भर के लिए चिराग
तुमने रोशन कर दिया घर मेरा
लगा मेरी झोंपड़ी में आग
भूख लगी तो तुमने मुझे आश्वासन खिला दिए
प्यास में ना जाने कितने नारे पिला दिए
काश तुम रोटी ही दे देते
ये तो ना रह जाता मलाल
कि सन सेंतालिस कि दोस्ती का भी
ना किया तुमने ख्याल
मेरे साथ कर लो तुम और कोई भी मजाक
मगर भगवान् के वास्ते ये मत कहो
मैं या मेरी संतान भविष्य में सुख भोगेंगे
आने वाली पीड़ी की चिंता हमें नहीं
क्यों कि हम एक दूसरे का खून पी के
अपनी संतान के खून को
अपनी तरह पानी ना होने देंगे
आने वाली पीड़ी तुमसे आप निपट लेगी
वो हक मांगेगी नहीं आगे बढ स्वयं झपट लेगी



.........



यदि सुबह शाम तक और शाम से सुबह तक
ये फासला नापना ही जीवन है
तब तो मैं बहुत जी लिया
किन्तु यदि ज़िन्दगी नाम है
शाम को कुछ सोचा
और सुबह कर दिखाने का
यदि ज़िन्दगी नाम है कुछ खो के पाने का
यदि ज़िन्दगी नाम है हर सुबह नूतन चेतना
हर संध्या एक नयी उम्मीद का
तब तो मैं बिलकुल नहीं जीया
अमृत समझ मृत्यु विष को
बूँद बूँद कर गले से उतारता रहा
उपलब्धि के नाम पर हर साल
कलेंडर चढ़ाता उतारता रहा
जीवन अमृत तो मैंने बिलकुल नहीं पीया
अरे! मैं तो बिलकुल नहीं जीया
उफ़ ये क्या हुआ यम आ पहुंचा है
और मैंने अभी तक कुछ भी नहीं कीया



.......



कैसे बीती इस
बार की बहार
बता सकते हैं ये
लुटी डोली के कहार.



.............



हसरतों का महल कुछ इस तरह टूटा है
सब्र का दामन कुछ इस तरह छूटा है
हम चिल्ला भी ना पाए मदद को
तूने हमें कुछ इस तरह लूटा है



..........



कब तक मल्हारों के ताने सुनूंगा मैं
कब तक तुम्हारे बहाने सुनूंगा मैं
फिर चाहे मत आना आज आकर ये बता जाओ
कब तक मुलाक़ात के जाल बुनूँगा मैं



.............



तमन्ना नहीं राँझा या मजनूं बनूँ
तमन्ना नहीं किसी की रातों का जुगनूँ बनूँ
हसरत अगर थी तो सिर्फ एक
तमाम उम्र उसीका रहूँ मैं जिसका बनूँ



.............




बहकते हुए पाँव सही डगर पर आ जाते
कोई मंजिल से जो बांह पसार आवाज देदेता
हमारा भी सावन चैन से गुजर जाता
कोई झूले से जो पींग बढ़ा आवाज देदेता .



..............



आप छोड़ आये थे हमें हमारे हाल पर
मगर हम खुश रहे अपनी तनहाइयों में भी
टूटे दिल की आह लेकर किसकी बशर हुई
आप तड़पते रहे मुहब्बत की शहनाइयों में भी .


........



अतीत की तूलिका अब भी
वर्तमान के कैनवास पर
दुखों के रंग बिखेर जाती है
ओ मेरी पर्यटक
क्या अब भी तुम्हें मुझे
याद करने की फुर्सत निकल आती है .



.......



सिवाय इनके प्रिय नहीं कुछ शेष
सिर्फ बचे हैं उजड़े दिल के अवशेष
चाहे ठुकरा दो या फूल समझ
सजा लो अपने केश .


.............



साथ तू रहे तो बंजर भी हरियाली है
साथ तू रहे तो अमावस भी उषा की लाली है
साथ तू रहे तो मैं मर के भी जी लूँगा
साथ तू रहे तो विषघट भी अमृत की प्याली है .



...................


करार मत दे लेकिन मैं दर्द भी नहीं चाहता
दवा मत दे लेकिन मैं मर्ज़ भी नहीं चाहता
यूँ किसके दिये पे किसकी बशर हुई आजतक
तू प्यार मत दे लेकिन मैं नफरत भी नहीं चाहता .



...........




तेरी आँखों का दीवाना नहीं मैं
लाखों की उँगलियों का निशाना नहीं मैं
सच प्रिये मुझ में यही एक फर्क है
हर एक शमा का परवाना नहीं मैं .



........



मेरा दर्द मुझे जीने नहीं देगा
तेरी याद मुझे मरने नहीं देगी
ज़माना बड़ा ज़ालिम है ऐ दोस्त
आज अगर हम नहीं मिले
तो कल ये दुनिया हमें मिलने नहीं देगी .


..............



तेरी बेवफाई का गिला
मैं किस से करूँ ज़माना बेवफा है
अब तो गिला है मुझे
अपनी ही वफ़ा पर .



..............



अपने इशारों पर ज़माना लिए फिरती हो
हर एक सुर में एक तराना लिए फिरती हो
मेरी प्यास से पूछो कीमत अपनी आँखों की
दो आँखों में जहाँ भर का मयखाना लिए फिरती हो .



............



मेरी मय्यत पर ना डालो फूल
तुम ज़िन्दगी भर मुझ पर हँसते रहे
आज फिर फूलों के बहाने
तुम चले आये मेरी मौत पे मुस्कराने .



.....



जिनके ख्याल में हम
दुनियां भुलाये बैठे हैं
उनकी बे-ख्याली को क्या कहें
वो हमी को भुलाये बैठे हैं .


...



मुहब्बत के दस्तूर से
अभी वाकिफ नहीं हैं वो
मैं जब जब बुलाता हूँ
चले आते हैं वो .


...........



होंठ सिल के काटी है अब तक
आगे भी बशर हो जाएगी
आह भी की हमने
तो ज़माने को खबर हो जाएगी .



................



लो उम्र की एक तारीख़ और
तुम्हारे नाम कर दी
तुम ना आयीं इंतज़ार में ही
शब तमाम कर दी .



.........



यादों के साए में जी लेंगे हम तुम्हारी कसम
हिज्र-ऐ-वीरां में काट लेंगे उम्र तुम्हारी कसम
किस कमबख्त को परवाह है अपने बर्बाद होने की
हर सांस में करेंगे तुम्हें आबाद तुम्हारी कसम .


...............



मेरी खामियों से उन्होंने जहाँ को
वाकिफ करा दिया
जिस बुत की मैंने की परस्तिश उसी ने मुझे
क़ाफ़िर बता दिया .




....




मैंने भी खुद को ख़त्म करने की कसम खायी है
इस खुदी को बेखुदी से बदल लूँगा
तू खुश रह अपने गुले गुलज़ार में
मेरा क्या में तो कांटों से भी बहल लूँगा .



...........



जाने क्यूँ दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है
मेरे महबूब जब मेरे रूबरू होते हैं
बुने होते हैं जो प्यार के जाल
नज़र मिलते ही सब काफूर होते हैं .