Friday, October 21, 2011

चिंगारी दबेगी नहीं इसलिये
शोलों को हवा दी है सनम
आप नाज़ुक हैं या नाज़ुक है नर्गिस का बदन
अक्सर फूलों से ये जिरह की है सनम
तुम पहले ही कब आए जो इस रात आओगे
फिर भी उम्मीद में सुबह की है सनम
यहाँ संभले वहाँ गिरे जाम पर जाम पिये
कुछ यूँ भी अपने मर्ज की दवा की है सनम
दिल पे तो भरोसा था ही कब
आँखों ने भी बेवफाई की
आपकी तस्वीर अशकों ने मिटा दी है सनम
जब से देखा है आपको रक़ीब के पहलू में
तब से दुश्मन को भी दुआ दी है सनम
आईने से तमाम उम्र छुपते रहे
शीशमहल में रहने वाले
एक छोटी सी खुशी सह न पाये
ज़िंदगी भर दुख सहने वाले
अज़ब चलन है दुनियाँ का यारो
ताउम्र इसे कोसते रहे इसमें रहनेवाले
किस उम्मीद पर तूने बाँधी है उम्मीद
मेरे दोस्त ये मकां तो हैं जल्द ढहने वाले
जब तलक खामोश पीते रहे सब बेखबर थे
रस्म तो निभा रहे हैं तुम्हारे अश्क बहने वाले
तुझ से अच्छी है याद तेरी
हर शाम आ तो जाती है

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कैसे जी पाऊँगा मैं तुझे भूल के
डूबा हूँ बस इसी सवाल में
जब खुद को भूल गया मैं
बस एक तुझे भुलाने के ख्याल में

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एक जान मेरी
सैकड़ों अदायें तेरी
किस-किस पे मरूँ
मुश्किल है मेरी

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सितमगर अपनी वफ़ादारी का
सबूत कुछ यूँ देय है
बात-बात में कहे है
बेवफ़ा मुझ को