Monday, December 9, 2013

ठुकराये गये हम इतनी दफा कि पत्थर हो गये....
आदमी थे या इंसान ? जो भी थे ! बेहतर हो गये

Thursday, December 5, 2013

मुझको उसकी इबादतों में जगह मिल गई
तुम ढूँढते रहो ! मुझे तो ज़न्नत मिल गई

Wednesday, December 4, 2013

रंज़ ये नहीं, तुम मुझसे मिलने आये
ग़म ये है, ग़मों को फिर से
मिरे घर का रास्ता मिल गया

Monday, December 2, 2013

मेरे महबूब की तिज़ारत(1) है न्यारी (1A)
मुहब्बत के खुदरा(2) सौदागर
शिकायतों में थोक (3) के व्यापारी
 
1. trade/business 1.A, unique 2. retail 3. wholesale

Friday, November 8, 2013



मुझे खबर थी इन्हें यक़ीन न आयेगा
मैंने तेरा ज़िक्र अभी शुरू ही किया था
और सब कहने लगे मियाँ ये परियों की दास्ताँ
बचपन में ही माकूल लगती थीं

Tuesday, November 5, 2013



अपनी आंखों में कितने सारे अधूरे सपनों की ढेरी लिये घूमता हूं
इस उम्मीद में कि पता नहीं कब कहां आंख लगे और वो सपने  
जो अधूरे  रह गये हैं न जाने उनमें से कौन सा पूरा हो  जाये
कोई सपने में कहे अब तक आप देख चुके हैं...... अब  आगे देखिये ...
और मैं खुश हो जाऊं..जैसे यकबयक उस फिल्म को आते देख हम खुश हो जाते हैं
जो इक अर्सा पहले कभी टेलेविजन पर अधूरी छूट गयी थी.
लेकिन हम सब के पास ऐसे अधूरे सपनों की एक लम्बी फेहरिस्त है
ज़िंदग़ी का हादसा ये नहीं कि ख्वाब अधूरे रह गये
हादसा ये है कि हमें याद ही नहीं हमारे कौन कौन से ख्वाब अधूरे रह गये

Sunday, November 3, 2013

रोटी जैसी छोटी सी चीज़ की फिक़्र न कर
तू ये देख बुत कितना दराज कद है तेरे हक़ में

Wednesday, October 16, 2013

कैसे कैसे दस्तूर बनाये ऐ खुदा ज़माने में
कमी न रखी मुहब्बत के मारों को सताने में
उन्हें वक़्त नहीं लगता बारहा रूठ जाने में
जो लगता है, मुझे ही लगता है उन्हें मनाने में

Wednesday, September 25, 2013



बचपन में कितनी अमीरी थी
कागज के थे तो क्या ?
हवाई जहाज, नाव, टोपी
पीपनी सब कुछ ही तो था
वो सब कुछ जो अमीर बनने को
दिनोंदिन खुश रहने को बहुत था
बहुत था दोस्तों के साथ शेयर करने को
आज सूरत बदल गयी है
सब कुछ ही तो बदल गया
न जाने वो अमीरी कहाँ रह गयी ?
दिनोंदिन ग़रीब होता जा रहा हूँ
क्या मैं ... क्या मेरे दोस्त !
अभावों के सहस्र रावण
सुख की सीता हर ले गए हैं
आसपास नज़र दौड़ाता हूँ
हम में विरला ही कोई कोई राम है

Tuesday, August 6, 2013



वो ये बखूबी जानता है
मैं उसकी मुहब्बत में गिरफ्तार हूं
और ये रूठना-मनाना तो बस
पैरोल का हिस्सा भर है
तेरी ज़ुल्फ की बेड़ियां तोड़ सकें
अभी इतनी हिम्मत नहीं तेरे क़ैदियों में
अलबत्ता इंक़लाब इतना भर चाहते हैं कभी कभी हमें भी
रूठने का हक़ तू अता कर ऐ ज़ालिम
कौन जाने हमें अपनी हथकड़ियों से
और बेपनाह  मुहब्बत हो जाये
हम और खातिरजमा हो जायें कि
तेरी क़ैद से दीगर ज़िंदग़ी भी भला
कोई जीने लायक ज़िंदगी होगी  ?

Saturday, July 6, 2013

क्यों खो जाता हूं हर बार तेरी यादों के शहर में

क्यों खो जाता हूं हर बार तेरी यादों के शहर में
गो दिन-रात की आमदोरफ्त है अपनी

Friday, July 5, 2013

जो सबसे ज्यादा क़रीब हैं दिल के



जो सबसे ज्यादा क़रीब हैं दिल के
उनके खंज़र सबसे गहरे हैं दिल के

हुक़्मरानों की तंज़ीम किस दौर में आ ली दोस्तो



हुक़्मरानों की तंज़ीम किस दौर में आ ली दोस्तो
किसी को 'सेकुलर' कहना बन गया गाली दोस्तो
हिंदु बड़ा है, न मुसलमां दोस्तो
बड़ी है तो इंसानियत और हिंदोस्तां दोस्तो

Wednesday, June 26, 2013

तुझे याद करना मेरे बस में नहीं  
तो तुझे भूलना मेरे बस में कैसे होता  
सोचता हूं तुमसे न मिला होता तो ?  
तुम तो 'तुम' ही रहते, बस मैं 'मैं' कैसे होता


एक दुनियां छोड़ आये हम अपने पीछे
एक दुनियां छोड़ आये तुम अपने पीछे
अब इन तमाम सवालों के क्या मानी
कौन आया ?............ किसके पीछे ?




Wednesday, June 19, 2013



मतलबी, खुदगरज़, धोखेबाज़, ज़िंदगी
कितने नामों से नवाज़ती ज़िंदगी
शहर के कोलाहल में एक पगडंडी सी ज़िंदगी
मेरी बस्ती से तेरे घर को आती ज़िंदगी
मुहब्बत न थी कभी, न सही, मेरा वहम ही सही
अलबता मुझ पर अक्सर तरस खाती थी ज़िंदगी