Saturday, November 14, 2020

कितने जी मेरे नाम के आगे लगाने लगे हैं 

हो न हो वो कहीं और जी लगाने लगे हैं 




 

Friday, October 30, 2020

 हम तो भूल जाने लगे थे

खोई दुनियां में आने लगे थे

अभी लोगों को पहचानने ही लगे थे

कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया

खुद से मुलाकात हो रही थी
दिन-तारीख की बात हो रही थी
घर के आईने से नज़र चार हो रही थी
कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया

ज़िस्म को भूख की गिज़ा लगने लगी थी
आँख को सूरज की आदत पड़ने लगी थी
दीगर इलाकोंमें आमदोरफ्त बढ़ने लगीथी
कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया

गज़ल का दीवान अभी ट्रंक में रखा ही था
रोजगार-ए-मुहब्बत का नफा नुकसान परखा ही था
अभी मरहमे दिल का नुस्खा सयाने ने फूँका ही था
कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया

Monday, June 15, 2020

तब समय देखने को घड़ी पहनते थे
अब घड़ी दिखाने को घड़ी पहनते हैं
कितने बदल गये हम कुछ बरसों में
अब खुशी नहीं,मुस्कराहट पहनते हैं

Tuesday, May 12, 2020

देख इतना संगदिल भी न था क़ातिल
छांव में रख गया मार के मुझे
तुम जालिम कह नाहक बदनाम न करो
उसने पानी भी पिलाया मार के मुझे
जुर्म मेरा मैं हँस दिया उसकी बात पर
वो मंद मंद मुस्कराया मार के मुझे
वो बादशाह है पर मेहरबां है बहुत
इमदाद का ऐलान भी किया मार के मुझे
जो उसे बेदर्द कहते हैं दुश्मन रहे होंगे
वो जार-जार खुल के रोया मार के मुझे

Tuesday, March 31, 2020

तुम क्या जानो उन शामों पे क्या गुजरी
तुमने तो बस बस्ती आना छोड़ दिया
इक जवानी है जो शोर मचाती आती है
इक बुढ़ापा है जो दबे पाँव आता है
इश्क़ में अक्सर गलत दवा की जाती है
मर्ज क्या है ? किसकी दवा की जाती है