Saturday, July 18, 2015

सवालों के जवाब तलाशती
हातिम सी उलझी ज़िंदगी
शीशे के शहर में भटकती
पत्थर की राजकुमारी सी ज़िंदगी
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यूँ तो हर कहानी के आखिर में
शहज़ादे को मिलती रही शहज़ादी
न जाने क़िले के किस तहखाने में
हमेशा को क़ैद ज़िंदगी
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तिलिस्म दुनियां के इतने आसां कहाँ ऐ दोस्त !
लम्हा लम्हा धूप-छाँव
लम्हा लम्हा आँसू-मुस्कान
मौत के कुँए में रोज़ क़रतब दिखाती ज़िंदगी

Thursday, July 16, 2015

aap ke lliye


My poetry rendition in RSC, Vadodara, now renamed NAIR year 2005-6