Wednesday, April 19, 2023

मुझसे काम याद आ रहे 

उन्हें बार बार 

हाल पूछा जा रहा है मेरा 

दिन में बार बार

 सुन रे ! न कोई मर्डर , न रेप 

न घोटाला !

क्या सोच तूने टिकिट के लिए 

आवेदन डाला ?

बंद लिफाफा

वक़्त-ए-रुखसत क़ासिद ने दिया 

तेरा बंद लिफाफा 

'ना' होगी ये सोच उम्र भर खोला नहीं 

तेरा बंद लिफाफा 

यूं सारे गवाहो-सुबूत मेरे हक़ में थे 

मुंसिफ़ पलट गया देख अदालत में 

तेरा बंद लिफाफा 

तक़दीर हम दोनों की एक सी हमदम 

मेरा मुकद्दर ना खुला और ना खुला 

तेरा बंद किफ़ाफ़ा 


 प्रश्न तो फिर प्रश्न है उत्तर देना ज़रूरी है 

लोकशाही है तो उसे स्वर देना ज़रूरी है 

कानून के आगे यकीनन बराबर हैं 

क्या फकीर ? क्या शाह  ? 

ये बात है तो ऐसा नज़र आना ज़रूरी है 

रवानी हो खून में तो सीने का माप नहीं देखा जाता 

सारस से दर जाते हैं ये दौर कागजी शेरों का है 

तुम बहादुर हो तो बहादुरी का मुजाहरा ज़रूरी है 

सियासत का सियाह चेहरा बेनकाब सबके सामने 

तुमने खत्म कीं रिवायतें मुरव्वतें तमाम 

तुम्हारी आँख का पानी मर चला तो क्या 

इक आईना आवाम की आँखों में है 

वक़्त आ गया सियासत को आईना दिखाना ज़रूरी है 

हाय रे वो तेरी मुहब्बत भरी मुस्कान 

उदास चेहरे की उदासी ली 

इस गरीब से दिल लगा के 

दिल की सारी अंधियारी ली 

कब रात हुई  कब दिन हुआ किसे खबर 

तेरी याद ने ऐसी मेरी नींद की सुपारी ली 

बरसों मेरे मुसकाने के बाद 

वो भरे बाज़ार मुस्काए हैं 

रसम-ए-रोका भई वाह !

वो खूब निभाए हैं 

उम्र भर बस इक इसी 

ख्वाब ने परीशा रखा 

कभी ट्रेन छूट गई 

कभी रस्ता भुला गए