तू रुसवा न हो कहीं सो लब मुस्कराते रहे
उम्र भर
दिल रोये तेरी
याद में , तो क्या करे कोई
तुझ पे मरना
खुफिया ख्वाहिश मेरी
बेनक़ाब आये हो, अब क़त्ले-आम क्या
करे कोई
सब हज़ार बार
पूछा किये, हम हज़ार बार इंक़ार कीये
दुनियां आंखों
में मुहब्बत पढ़ ले तो क्या करे कोई
एक उम्र लगा
के अपने वज़ूद को मुहब्बत किया था
वफा का चलन ही
उठ गया, इस दिल-ए-नाकाम का क्या करे कोई
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