Tuesday, November 27, 2012




'डिमोकिरेसी महाठगिनी हम जानि
अमीर-गरीब फाँस लिए कर डोले बोले मधुरी वानी
गरीब को गरीबी हटाओ कह ले बैठी
अमीर के इंडिया-शाइनी
बेघर के स्लम बन बैठी लैंड-लॉर्डन के आदर्श निरमानी
काहू के एफ.डी.आई. काहू के खेतन में नहीं पानी
सूखा हो या हो बाढ़ याकू दोनों रिझानि
कहें कबीर सुनो भई साधो ! उधर 'गॉड करी' कोलावरी डी इधर 'कलमा डी'  

Saturday, November 24, 2012


तू रुसवा न हो कहीं सो लब मुस्कराते रहे उम्र भर

दिल रोये तेरी याद में , तो क्या करे कोई


तुझ पे मरना खुफिया ख्वाहिश मेरी

बेनक़ाब आये हो, अब क़त्ले-आम क्या करे कोई 


सब हज़ार बार पूछा किये, हम हज़ार बार इंक़ार कीये

दुनियां आंखों में मुहब्बत पढ़ ले तो क्या करे कोई


एक उम्र लगा के अपने वज़ूद को मुहब्बत किया था  

वफा का चलन ही उठ गया, इस दिल-ए-नाकाम का क्या करे कोई  

इक लम्हे को भी जिसे अलग होना मंजूर न था
आज भरी दुनियां में मुझे तन्हा छोड़ गया

कैसे यक़ीं होगा ज़माने में अब किसी के वादे का
दो जिस्म एक जां कहता था वही तन्हा छोड़ गया

Wednesday, November 14, 2012


इस दिल की बेताबी, सम्भाले न सम्भली है 
जब-जब याद आई वो चाँद सी लड़की दिल्ली की
 

अचानक मुझे रूबरू पा वो मुस्करा के बोले
जनाब बहुत दूर तक ले गये आप याद दिल्ली की
 

सुन के अमिताभ और शाहरुख के किस्से
यूँ लगा मुम्बई भी गोया अब तो हो गयी दिल्ली की
 

भले तबाह हुये, बरबाद हुये हर बार उठ के चल पड़े
मुफलिस हम नहीं, हमारे पास है दौलत दिल्ली की 
 

कितनी बार लुटी है उसे खुद भी याद नहीं
पर दिल से न जा सकी ज़िंदादिली दिल्ली की  

Monday, November 12, 2012


तेरा चेहरा मेरे हाथों में था

एक सूरज मेरी हथेली में था

कल रात तेरी याद आई

कितना उजाला हवेली में था

Sunday, November 4, 2012

मेरे ही हिस्से में क्यों कर सारा दर्द आया
वो भी तो था शामिल मेरी बरबादियों में.