Thursday, July 19, 2012


ये सच है या कि सपना कोई
सपना सा लगता है !
सपने का सच होना भी
अब एक सपना सा लगता है

कहीं उम्र भर साथ रह के भी
अजनबी के अजनबी
देखते-देखते कहीं
एक अजनबी अपना सा लगता है

किसी नज़र की गुजर न थी
हवा भी परायी थी
क्या हुआ है ये कि
वो छूए है तो दवा सा लगता है

ये कैसी बेखुदी तारी है मुझ पर
कल शाम मिला था मैं तुम से
आज तुमसे बिछुड़े
ज़माना सा लगता है

झील सी आँखें, लब गुलाब तेरे
कितने ही एहतियात क्यूँ न हो
तुझे छूते  हुए अपनी कसम
डर सा लगता है

ये सच है या कि सपना कोई
सपना सा लगता है !
सपने का सच होना भी
अब एक सपना सा लगता है

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