३१
एक बात तय हो गयी
तुम से दूर रह कर
हम जी नहीं सकते
तुम से दूर रह कर
सब्र का इम्तिहां नहीं
ये तो और क्या है
हम रो नहीं सकते
तुम से दूर रह कर
वो शख्स किस मिट्टी के थे
जिन के घाव वक्त ने भर दिए
हम तो और भी छलनी हुए
तुम से दूर रह कर
देखा मुझे तो खास दोस्त भी
पहचान नहीं पाए
कितने बदल गए हम
तुम से दूर रह कर
अब शहर भर में बदनाम हूँ
तो सुकून है दिल को
मुहब्बत में मुझे भी कुछ हासिल हुआ
तुम से दूर रह कर
३२
लाख बुराई सही पर
आदमी अच्छा था
यह अहसास
छोड़ जाऊंगा
मशहूर हैं तेरी दुनियां में लोग
दिमागो दौलत के दम पर
मैं तो बस अपने ज़ज्बात
छोड़ जाऊंगा
बरसों तक भुला न सकोगे
दोस्त खुशबू कुछ ऐसी
आस-पास छोड़ जाऊंगा
खुदारा मुझ को यूँ न सताओ
बार बार दूर जा कर
क्या पता कब तुमको अश्कबार
छोड़ जाऊंगा.
३३
तेरी याद, तेरा ख्याल
तेरी उल्फत, तेरा गम लिए
इस दुनियां में रहे
गो कि बेशुमार दौलत
और लुटेरों की बस्ती में रहे
माल, असबाब,इज्जत,शोहरत
सब आसां थी मगर
हम तुम से मिलने की खातिर
तमाम उम्र सफर में रहे
३४
इक शख्स अक्सर
मेरे ख्वाब में आये है
मैं तो अनजान हूँ
घबराया,सहमा,ढूँढता फिरता है
न जाने किस दरबदर
बोलता कुछ नहीं बस
दिल के ज़ख्म दिखाए है
ये माहौल, ये बंदिशें
ये सावन, ये बारिशें
तुमसे भी कुछ कहती हैं
या बस मुझे ही तुम्हारी याद सताए है
लोग रिश्ते बदल रहे हैं,लिबासों की तरह
तू न जाने किस दौर का है
एक दिल के टूटने का गम
दिल से लगाये है
दोस्त सब्र करके देख
सब्र से दुनिया है
यूँ भी कभी
क्या मांगने से मौत आये है
३५
दुश्मन है गर तू तो
सीने पर घाव क्यों नहीं करता
और अगर मेरा है तो
अपनों सा बर्ताव क्यों नहीं करता
सदियों से जल रहा है आदमी
दोज़ख की आग में
ऐ खुदा रहमतों की
बरसात क्यों नहीं करता
ईमान, मस्ती, वफ़ा, दोस्ती
यूँ सब पे लुटाने की चीज़ नहीं
तू अपने में
बदलाव क्यों नहीं करता
शमां बनके जले सारी उम्र जिनके वास्ते
उनकी बर्फ सी खामोशी न सही जायेगी
ऐ खुदा मेरे सीने की जलन को
अलाव क्यों नहीं करता
हम तूफां के पाले हुए हैं
नाखुदा लहरों का खौफ कैसा
आजमाना है तो हर लहर को
सैलाब क्यों नहीं करता
३६
मुझ से मत पूछ क्या है
तेरा इश्क
कभी प्यास,तो कभी दरिया है
तेरा इश्क
तुम्हें देख खुदा में
यकीं आ गया
कभी कुफ्र तो कभी इबादत है
तेरा इश्क
तुम्हें जानने से पहले
जाना न था दर्द मैंने
कभी आँसू तो कभी कहकशां है
तेरा इश्क
अपनी जिंदगी सा तराशा है
तेरा हर कौल हमने
कभी पत्थर तो कभी शीशा है
तेरा इश्क
तेरी उल्फत ने भुला दी
वक्त की तमाम हिदायतें
सदियाँ गुजर गयीं फिर भी नया नया सा है
तेरा इश्क
३७
जुल्मो सितम के अब कुछ
और नए मंज़र होंगे
शिकारी के हाथों में
परिंदों के पर होंगे
वो बहुत दूर तक जायेंगे
ये तो खबर है लेकिन
शाम तक इस बाज़ार में
हम किधर होंगे
वो हैं कूँचा-ऐ-यार में
जाने को तैयार
उम्मीदें, ज़ख्म,आँसू
फिर उनके हमसफ़र होंगे
घाव नया है कह के
बहला रहे हैं
दोस्त उनके कुछ गम तो
मेरे साथ उम्र भर होंगे
वो उदास,खफा
अनमने बैठे हैं
वजह कुछ भी हो देख लेना
सब इलज़ाम मेरे सर होंगे
३८
अंधों के शहर में
आईने बेचने निकले
यार तुम भी मेरी तरह
दीवाने निकले
किस किस के पत्थर का
जवाब दोगे तुम
महबूब की बस्ती में
सभी तो अपने निकले
वो हँस कर क्या मिले
तमाम शहर में चर्चा है
तेरी एक मुस्कान के मायने
कितने निकले
ऐ दोस्त! कैसे होते हैं वो लोग
जिनके सपने सच होते हैं
एक हम हैं. हमारे तो
सच भी सपने निकले
३९
दिल देखिये. . उसका शहर देखिये
आज के दौर में
मुस्कराए कोई
तो उसका जिगर देखिये
मेरी उम्र से लंबी है
हिज्र की रात
होए है कब
इसकी सहर देखिये
वो आये महफ़िल में तो उसकी बात हो
न आये तो उसकी चर्चा होए है
कौन सिखाए है उसे
नए नए हुनर देखिये
रकीब के इलाके में
कल जश्न था
उसकी गली से रस्ते
जाये हैं किधर देखिये
वो सितमगर अक्सर
मेरे ख्वाब में आये है
क़ासिद उन पर मेरी
मेहमान नवाजी का असर देखिये
४०
इस शहर का इंतजाम शानदार लगा
हर बेईमान यहाँ ईमानदार लगा
इतनी गर्मजोशी से मिला आज दोस्त मेरा
मुझे दिल ही दिल में उससे डर लगा
सूखा...भूकंप...और फिर बाढ
मंत्री को ये साल बहुत ही कामयाब लगा
बड़ी उम्मीद से आया था
वो गाँव के जलसे में
इंसानों की भीड़ में न कोई हिंदू न मुसलमां
नेता को ये गाँव बड़ा नागवार लगा
ईमान.इखलाक और बेपनाह मुहब्बत
ये मुफलिस भी मुझे खूब मालदार लगा
ये तरक्की के किस दौर में आ गयी है कौम
शहर में हर शख्स एक-दूसरे से खबरदार लगा
एक बात तय हो गयी
ReplyDeleteतुम से दूर रह कर
हम जी नहीं सकते,,,,
Bahut sundar rachanayen sir ji.....aabhaar