(21)
एक तुम्हारा साथ पा
मैं तरक्की की
बुलंदियां
पार कर जाऊँगा
एक तुम जो बनो हमसफ़र मेरी
सच कहता हूँ मैं
तूफानों को क़ैद
कर लाऊंगा
तुमसे अलग मेरी जां
मेरी जां कुछ भी नहीं
मैं मैं नहीं, हूँ भी तो
मेरी पहचान कुछ भी नहीं
तुम ही तो मेरी जिंदगी भर की दौलत हो
मेरा जोश,मेरी शोहरत,मेरी ज़रूरत हो
ये दुनियां तो बस ख्वाब है दीवाने का
इस में बस तुम ही एक हकीक़त हो
(२२)
आज नहीं तो शायद
कल पता चल जाए
ये मेरा इश्क है
तेरा हुस्न नहीं
जो ढल जाए
मेरी दीवानगी देख
मेरी वफ़ा देख
तू फैसला कल पे न छोड़
कौन जाने कब ये मंज़र
बदल जाए
तेरा हर कॉल मुझे मंजूर
मैं अगले जनम तक
फिर तेरा इंतज़ार कर लूँगा
चल तेरा ये अरमां भी
निकल जाए
(२३)
किसी खुशनुमा शाम को
और खुशनुमा बनाएँ
चलो एक शाम हम
साथ-साथ बिताएं
न मैं कहूँ तुम्हें जिंदगी
न तुम कहो मैं तुम्हारा सब कुछ
न हम साथ-साथ
जीने-मरने की कसमें खाएँ
चलो एक शाम हम
साथ साथ बिताएं
किसी खुशनुमा शाम को
और खुशनुमा बनाएँ
न तुम मेरे लिए
ज़माने से करो बगावत
न आसमां इतना करीब कि तारे तोड़ लाएं
बस एक दूसरे को बेहतर जानें
इस समझ के सिलसिले जमाएं
किसी खुशनुमा शाम को
और खुशनुमा बनाएँ
न कोई आरज़ू
न कोई इसरार हो
न हम एक दूसरे की
कमियां गिनाएं
बस हँसें,चहकें और मिलके गाएं
एक शाम ऐसी भी
हम साथ साथ बिताएं
(२४)
दिल लिखना, नसीब लिखना
दर्द लिखना. जिंदगी लिखना
कितना मुश्किल है
उनपे कुछ भी लिखना
गेसुओं पे क्या कहूँ
जो पहले नहीं कहा
उनकी ये जिद
इनपे फिर भी कुछ लिखना
नर्म गुलाब पंखुड़ी से होंठ तेरे
अता करें जिंदगी
मुश्किल है इस से बरतरफ
इनपे कुछ भी लिखना
तेरी आँखों का मशकूर मैं
इस जनम फिर मुझे पहचान लिया
मुमकिन नहीं इनकी जादूगरी पे
और कुछ भी लिखना
दिल लिखना, नसीब लिखना
दर्द लिखना, जिंदगी लिखना
कितना मुश्किल है
उनपे कुछ भी लिखना
(२५)
सदियों मेरी चाहत
मेरी बेखुदी का
सिलसिला रही है तू
तेरे दम से रही
रगे जां में हरकत
मेरी जिंदगी का हसीं
वलवला रही है तू
मेरे दर्द को इक
हस्ती अता की
सचमुच बड़ी करमफरमा
रही है तू
यूँ इसे मत तोड़
कुछ तो ख्याल कर
आखिर जिंदगी भर
इसी दिल में रही है तू
(२६)
तुम क्या उठे महफ़िल से
ढूँढता फिर रहा हूँ
न जाने कहाँ खो गयी
मेरी जिंदगी
एक बार तुम पलट के देख लो
इस उम्मीद में
दूर तक तुम्हें जाते देखती रही
मेरी जिंदगी
ये मानने में गुरेज़ कैसा
तेरी रहगुज़र से जब भी गुजरा हूँ
वहीँ ठहर के रह गयी
मेरी जिंदगी
न कोई उमंग, न कोई खुशी
मैं जिंदा हूँ
पर कहाँ है
मेरी जिंदगी
आज पूछते हो तो सुनो
मेरे जीने का राज़
जादूगर की जान सी तुझमें बसती है
मेरी जिंदगी
(२७)
इस शहर की भीड़ में
अब कहाँ दोस्त भी
दोस्त की तरह मिलते हैं
यूँ तो सारे अज़ीज़ इसी शहर में हैं
पर ज़माना कुछ ऐसा बदला है
काम पड़े तभी
दोस्त की तरह मिलते हैं
शहर भर में बदनाम हो गए
हम अपनी आदत से परेशां
जिससे मिलते हैं
दोस्त की तरह मिलते हैं
अपना शहर छोड़ तेरे शहर में आ गए
बड़ा सुकून है दिल को
तेरे यहाँ तो अजनबी भी
दोस्त की तरह मिलते हैं
(२८)
उसके मिजाज़ को
हमसे बेहतर कौन समझा है
हमने उसका हर नाज़
उठा रखा है
अब ये भी नहीं
हम कभी खफा ही न हों
बस इतना है हमने ये काम
कल पे उठा रखा है
ज़ज्बा-ऐ-इश्क
फल-फूल रहा है आज भी
कहने को इसने आसमां
सर पे उठा रखा है
अपने बंदगी खुद
करा लेती है
काफिर जवानी ने वो
अहद उठा रखा है
(२९)
वो बोलने पाती तो
कोई बहाना लगाती
सब कुछ सच-सच
कह देती है ये ख़ामोशी
तुमने अच्छा अहद लिया
होंठ सीने का
हमें तो अपनी जान दे के
निभानी पडी ये ख़ामोशी
ज़माने को चाहिए
नए नए अफ़साने दर रोज
दुनियां बहुत देर तक सहे
ऐसी नहीं है ये ख़ामोशी
आज फिर माहौल
अपने हक में नहीं
महफ़िल में उनकी बड़ी
गुमसुम सी है ये ख़ामोशी
(३०)
हम दोनों ने खूब दस्तूर
निभाए मुहब्बत के
तुमने बेजा आरज़ू न की
मेरा कोई अरमान न हुआ
लोग सुनते है और आज भी हँसते हैं
ये कैसी मुहब्बत थी
तुमने आहें न भरीं
और मैं बदनाम न हुआ
दोस्त हमारी मुहब्बत किसी
किसी इबादत से कम न रही
वरना बताये कौन यहाँ
इश्क में तबाह न हुआ
मुहब्बत दो रूहों के
एक हो जाने का सिलसिला थी
इसमें खुदा से अलहदा
हमारा कोई राजदार न हुआ
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