Wednesday, October 13, 2010
मेरी १०१ कवितायेँ
(६)
ऐसी दौलत के तलबगार नहीं
तुम्हारी किताब में भले मालदार नहीं
जहाँ मकान पर मकान तो बन गए
अफ़सोस मगर घर उजड रहे हैं
शहर का हवा-पानी बदला है
वो अलग दौर था ये कुछ और
बच्चे तो ज़हीन और काबिल बन गए
बस मां-बाप बिगड रहे हैं
वो हर बार क्यूँ मुस्करा के मिले
एक उम्र लगी ये राज़ जानने में
सुनते हैं वो इक ज़माने से
भाई-भाई से लड़ रहे हैं
ये उनका फैसला है
मुझसे कोई सरोकार नहीं
बस इतना बताएं मेरी रहगुजर पे
वो बार बार क्यूँ मुड रहे हैं
ये ज़मीं हमारी, आसमां हमारा
हम इसी दुनिया के हैं
अब कौन उनसे पूछे
वो इतना क्यूँ उड़ रहे हैं
(७)
खुदा ये दिन भी
दिखाए मुझको
मैं रूठा रहूँ
वो मनाये मुझको
इतना आसां कहाँ
हुनर बदले का
हसरत ही रह गयी
इक बार वो मेरी तरह सताए मुझको
सब कुछ तो कहा
बाकी क्या रहा
अरमां अगर है तो
आज वो भी सुनाये मुझको
सुना है मेरा नाम न लेने का
अहद उठाया है
ये कैसी कसम है
शामो सहर वो गुनगुनाये मुझको
दिल के खेल में सनम
अब माहिर हो चले
गैर की महफ़िल में
वो बेवफा बताये मुझको
ऐ खुदा दिल के हाथों
इस क़दर मजबूर कर दे
भले न बात न करे
इक बार तो बुलाए मुझको
मुझमें खामियां हज़ार
मुझे कब इनकार
काश: ! वो मिटा के
फिर से बनाये मुझको
(८)
आखिर दिल की बस्ती
फिर क्यूँ वीरान हो
तुमने तो दुआ दी थी
तुमसे हर जगह इंसान हो
ये दौर किस शहर में
ले आया हमें
फर्क ही मिट गया
सुबह हो या शाम हो
मैंने कब तुमसे
फरिश्तों की तमन्ना की थी
हमसफ़र बस एक देता
जिसका गुनाहगारों में नाम हो
दोस्त ! हमारी गुजर मुमकिन नहीं
तेरे शहर में
यहाँ एक भी तो ऐसा न मिला
जो मुहब्बत में बदनाम हो
(9)
ज़मीर बेच अमीर
बन गए
ईमान के अच्छे दाम मिले
तेरे शहर में
ठंडी आहें. . दिल में आग
आँखें अश्कबार
हमें तीनों मौसम एक साथ मिले
तेरे शहर में
तेरा नाम .. तेरा ख्याल
तेरी याद ... तेरा गम
दीवाने को कितने काम मिले
तेरे शहर में
कुछ यूँ सूखा आँख का पानी
उम्मीद न थी, लोग अन्धों से भी
नज़रें चुराते मिले
तेरे शहर में
एक बात हम जान नहीं पाए
हमें जो अच्छे लगे
वो सभी क्यों बदनाम मिले
तेरे शहर में
(१०)
ये तेरी मुहब्बत किस मंज़र पे
ले आई दीवाने को
भीड़ में भी अकेला सा
फिरे है कोई
ये मेरा वहम है, सच है
या तिलिस्म तेरा
साफ़ दिखता नहीं पर
हर घड़ी सवाल सा करे है कोई
मैंने यादों को बहुत
गहरा दफनाया था
फिर क्यूँ सरे-शाम से ही
पीछा सा करे है कोई
(११)
तुमने कुछ कहा नहीं
मैंने कुछ बताया नहीं
फिर क्यूँ तेरा नाम लेके
बुलाए हैं लोग मुझे
ये मेरी चाहत की इंतिहा
नहीं तो और क्या है
पीता नहीं हूँ फिर भी
तेरी कसम देके पिलाये हैं लोग मुझे
सुना है हँसने के बाद
रोना लाजिमी है
मगर ऐसा कितना हँस लिए
इस जनम जी भर के रुलाये हैं लोग मुझे
तुम आओ तो एक एक के
किस्से बताऊँ तुम्हें
तुम आ रही हो, तुम आ रही हो
कह के बरसों सताए हैं लोग मुझे
सुना है जिसे शिद्दत से चाहो
ख्वाब में मिलने आता है
फिर क्यों देर रात तक
जगाए हैं लोग मुझे
(१२)
खास कुछ कहा नहीं
खास कुछ सुना नहीं
रात की कौन सी बात याद कर
वो शरमा के रह गए
उतने आसां कहाँ मसाइल मुहब्बत के
जवाब आते उम्र गुजर जाती है जाना
ऐसा क्या पूछ लिया तुमने
वो घबरा के रह गए
मेरे साथ ये हादसा अक्सर हुआ
इनकार समझें या इकरार
मेरे जिक्र आते ही
वो मुस्करा के रह गए
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