Thursday, October 14, 2010

मेरी १०१ कवितायेँ

(१३)

मुहब्बतों की दूरियों में अजब फासले हैं
कहीं एक बार मिल के उम्र भर का गम
कहीं उम्र भर साथ रह कर भी फासले हैं

कितनी ही क्यों न सिमट जाएँ मेरे शहर की सरहदें
दो भाइयों के बीच अभी बहुत फासले हैं

आँखें मेरी, आँचल तेरा, गम आते तो कैसे
हम इसी खुशफहमी में रहे दोनों में बहुत फासले हैं

हम तुम्हें चाहा किये जिस तरह
तुमने चाहा ही नहीं हमें उस तरह
वरना दो धडकनों के बीच कहाँ फासले हैं

तुम सबके दिलों पे राज़ करने की चाहत में मगरूर हो
शहर में सब जानते हैं वफ़ा से तुम्हारे जो फासले हैं

गर्मजोशी से मिलना महज़ आदाब बन के रह गया
जानते आप भी हैं जो दिलों में फासले हैं

अफ़सोस दोस्त ! इक़रार आया, न तुम्हें
मुहब्बत का इनकार आया
वरना लोग हँस हँस के क्यूँ पूछते
“कहाँ तक पहुँचे...अभी कितने फासले हैं ?”


(१४)


तुमसे कभी मिले नहीं
तुम्हें कभी देखा नहीं
ताउम्र बुतपरस्त रहे
हम तेरी तस्वीर के

लाख मौसम आये गए
.... बदला करे
हर बार और शोख हुए
रंग तेरी तस्वीर के

मेरी खुशी में खुश
मेरे गम में ग़मगीन
एहसास एक से रहे
मेरे दिल औ तेरी तस्वीर के

कभी बहार कभी गुल
कभी चाँद,कभी झील
दुनियां ने कितने
नाम दिए तेरी तस्वीर के

इससे बढ़ कर सुबूत
न दे सके अपनी चाहत का
रोज रात पुर्जे-पुर्जे कर
सुबह जोडते रहे टुकड़े तेरी तस्वीर के

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