Friday, October 8, 2010

मेरी १०१ कवितायेँ

(१)

तुम्हारी कही निभा रहा हूँ
देखो कितना खुश नज़र आ रहा हूँ
माथे की शिकन से लोग पहचान लेते हैं
रोज एक नया नकाब लगा रहा हूँ
लाख चाह कर भी मैं तेरे जैसा न बन सका
आज भी इबादत कि तरह दिल लगा रहा हूँ
वक्त के पाबन्द वो कल थे न आज
वो आयेंगे ज़रूर यही सोच उम्र बिता रहा हूँ
आना उनका मेरे ज़नाजे पे सौ नाज़ के साथ
नसीब देखिये वो आये हैं और मैं जा रहा हूँ.

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