Tuesday, November 5, 2013



अपनी आंखों में कितने सारे अधूरे सपनों की ढेरी लिये घूमता हूं
इस उम्मीद में कि पता नहीं कब कहां आंख लगे और वो सपने  
जो अधूरे  रह गये हैं न जाने उनमें से कौन सा पूरा हो  जाये
कोई सपने में कहे अब तक आप देख चुके हैं...... अब  आगे देखिये ...
और मैं खुश हो जाऊं..जैसे यकबयक उस फिल्म को आते देख हम खुश हो जाते हैं
जो इक अर्सा पहले कभी टेलेविजन पर अधूरी छूट गयी थी.
लेकिन हम सब के पास ऐसे अधूरे सपनों की एक लम्बी फेहरिस्त है
ज़िंदग़ी का हादसा ये नहीं कि ख्वाब अधूरे रह गये
हादसा ये है कि हमें याद ही नहीं हमारे कौन कौन से ख्वाब अधूरे रह गये

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