मतलबी, खुदगरज़, धोखेबाज़, ज़िंदगी
कितने नामों से नवाज़ती ज़िंदगी
शहर के कोलाहल में एक पगडंडी सी ज़िंदगी
मेरी बस्ती से तेरे घर को आती ज़िंदगी
मुहब्बत न थी कभी, न सही, मेरा वहम ही सही
अलबता मुझ पर अक्सर तरस खाती थी ज़िंदगी
कितने नामों से नवाज़ती ज़िंदगी
शहर के कोलाहल में एक पगडंडी सी ज़िंदगी
मेरी बस्ती से तेरे घर को आती ज़िंदगी
मुहब्बत न थी कभी, न सही, मेरा वहम ही सही
अलबता मुझ पर अक्सर तरस खाती थी ज़िंदगी
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