Tuesday, July 6, 2010

सुनहरी धूप की छाँव तले....

मुझ से मत पूछ क्या है
तेरा इश्क .
कभी प्यास तो कभी दरिया है
तेरा इश्क .

तुम्हें देख खुदा में यकीन आ गया
कभी कुफ्र तो कभी इबादत है
तेरा इश्क .
तुम्हें जानने से पहले जाना न था दर्द मैंने
कभी आंसू तो कभी कहकशां है
तेरा इश्क .
अपनी ज़िन्दगी सा तराशा है, तेरा हर कौल हमने
कभी पत्थर तो कभी शीशा है
तेरा इश्क
तेरी उल्फत ने भुला दी, वक़्त कि तमाम हिदायतें
सदियाँ गुजर गयीं, फिर भी नया नया सा है
तेरा इश्क.
...........
मेरे जैसे और भी मिल जायेंगे
तमाम घर इस जहान में.

ऊंची दीवारें तो हैं
मगर खिड़की नहीं जिन मकान में.

खिलौने बिकते देख अज़ब दर्द है
बच्चे की जुबान में
वो जानता है भूखी माँ
बेच रही है इन्हें नुकसान में
..........
आँखें बंद कर लोगे तो दिल में उतर जायेंगे
दोस्त ये लम्हे बहुत दूर तलक जायेंगे
ऐ खुदा उन्हें लम्बी उमर दे
हर बात में कहते हैं तुम्हारे बिना मर जायेंगे
...........
मेरी पलकों पे तेरे ख्वाब रख गया कोई
मेरी साँसों पे तेरा नाम लिख गया कोई
चलो ये वादा रहा तुम्हें भूल जायेंगे
इस क़ायनात में गर तुमसा दिख गया कोई.

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तुम्हें तो मेरे बिना जीने की आदत पड़ जाएगी
देखें मेरी बेखुदी मुझे कहाँ ले जाएगी
मौसम आयें जाएँ बदला करें,किसे परवाह
क्या बहार मुझे देगी,खिंजा मेरा क्या ले जाएगी
..........


भीड़ में एक आदमी आज फिर
जाना-पहचाना सा लगा
बातें करता था वो अमन-ओ-ईमान की
कुछ कुछ दीवाना सा लगा
........



तेरे शहर का ये रिवाज खूब है
जितना बड़ा सितमगर उतना ही महबूब है
एक ज़माना हुआ तुमको गुलशन से गुजरे
फूलों पे आज तक तेरा रंग तेरा सुरूर है
फिजा में तेरी खुशबू रची-बसी है
क़ायनात और तुझ में कुछ गुफ़्तगू ज़रूर है
.......


अंधों के शहर में आईने बेचने निकले
यार तुम भी मेरी तरह दीवाने निकले
किस किस के पत्थर का जवाब दोगे तुम
महबूब की बस्ती में सभी तो अपने निकले
वो हँस कर क्या मिले तमाम शहर में चर्चा है
तेरी एक मुस्कान के मायने कितने निकले
ऐ दोस्त कैसे होते हैं वो लोग जिनके सपने सच होते हैं
एक हम हैं हमारे तो सच भी सपने निकले

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तुम क्या उठे महफ़िल से, तमाम नूर ले गया कोई
तेरी शोहरत, तेरा जिक्र बहुत दूर ले गया कोई
बाग़ परेशाँ, बागबान परेशाँ, फूलों तक तेरी चर्चा जरूर ले गया कोई
तुमसे मिलके खामोश गुमसुम बैठे हैं
एक मुलाक़ात में ही सारा गुरूर ले गया कोई
तुम जवां हुए ज़न्नत में हलचल है,आखिर उनकी हूर ले गया कोई
तुम नज़र आ गए,तुम मुस्करा दिए वक्ते रुखसत
यही एक तस्वीर ले गया कोई
.......


दिल देखिये उसका शहर देखिये
आज के दौर में मुस्कराए कोई
तो उसका जिगर देखिये
मेरी उम्र से लम्बी है हिज्र की रात
होए है कब इसकी सहर देखिये
वो आये महफ़िल में तो उसकी बात हो
न आये तो उसकी चर्चा होए है
कौन सिखाये है उसे नए नए हुनर देखिये
जब से मेरे ख्वाब में आने लगे
सितमगर पर नया निखार है
वल्लाह उन पर मेरी मुलाक़ात का असर देखिये
...........


हम जागते हुए भी
तमाम उम्र सोते से रहे
तुम्हें ख्वाब में मिलने का
वादा करना न था
............
हम दोनों की ही कुबूल हो गयी दुआ
तेरे दिल को कभी दर्द न मिला
और मेरे दर्द को दवा
...........


उसकी ख़ामोशी भी बोलती है
तुम एक बार सुन कर देखते
पेश्तर इसके काफिर कहो मुझे
काश उस हसीं बुत को तुम भी एक बार देखते .

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आदमी अब आदमी कहाँ समाचार हो गया
कल तक था जो एतराज आज सदाचार हो गया
कभी शक,कभी हँसी का बायस रहा
हर वो शख्श जो यहाँ ईमानदार हो गया
..........


मेरा दिल देखिये,मेरा जिगर देखिये
चुप जा रहा हूँ किस मकतल ले जाये सितमगर देखिये
यूँ तो जहाँ भर की बातें हैं मालूम
बस मेरी हालत से रहता है वो बेखबर देखिये
रकीब रोज तेरी शान में कशीदे गाये है
चुप सुन रहा हूँ मेरा सब्र देखिये
ज़िन्दगी भर सताया है तुमने
अब ऐसी भी क्या बेरुखी
मेरे कातिल एक बार तो
मेरी तरफ देखिये
.........


एक बात तय हो गयी
तुमसे दूर रह कर
हम जी नहीं सकते
तुमसे दूर रह कर
सब्र का इम्तिहान नहीं
तो ये और क्या है
हम रो नहीं सकते
तुमसे दूर रह कर
वो शख्श किस मिटटी के थे
जिनके घाव वक़्त ने भर दिए
हम तो और भी छलनी हुए
तुमसे दूर रह कर
देखा मुझे तो खास दोस्त
भी पहचान न पाए
kitne बदल गये हम
तुमसे दूर रह कर
अब शहर भर में बदनाम हूँ
तो सुकून है दिल को
मुहब्बत में मुझे भी कुछ हासिल हुआ
तुमसे दूर रह कर
.........


दिल में रख लोगे तो
ज़िन्दगी खुशियों से भर देंगे
हम दीये है जल के भी
तेर घर को रौशनी देंगे
तेरे आगे न बोलने की
कसम उठा ली है
फिर लाख बुरा कहो लाजिमी है
हम कोई सफाई न देंगे
रूठना- मनाना हमें न
आया उम्र भर
पर यकीन जानो तुम्हें
कभी रूठने न देंगे
मौत पे रोने वालों से पूछो जरा
जीते जी कहाँ थे
अपनी किस्मत में क्या यही था
अजनबी हमें कन्धा देंगे
........


हम दोनों ने खूब दस्तूर
निभाए मुहब्बत के
तुमने बेजा आरज़ू न की
मेरा कोई अरमान न हुआ
लोग सुनते है और आज भी हँसते हैं
ये कैसी मुहब्बत थी
तुमने आहें न भरी
मैं बदनाम न हुआ
दोस्त हमारी मुहब्बत
किसी इबादत से कम न रही
वरना बताये कौन यहाँ
इश्क में तबाह न हुआ
मुहब्बत दो रूहों के
एक हो जाने का सिलसिला थी
इसमें खुदा से अलहदा
हमारा कोई राजदार न हुआ
....


वो बोलने पाती तो
कोई बहाना लगाती
सब कुछ सच सच
कह देती है ये ख़ामोशी
तुमने अच्छा अहद लिया
होठ सीने का
हमें तो अपनी जान दे के
निभानी पड़ी ये ख़ामोशी
ज़माने को चाहिए
नए -नए अफ़साने दर रोज
दुनिया बहुत देर तक सहे
ऐसी नहीं है ये ख़ामोशी
दोस्त अच्छा हो तुम
लौट लो अपने घर
महफ़िल में उनकी आज बड़ी
गम-सुम सी है ये ख़ामोशी
.......


झूठे को ही सही एक बार
रुकने को कह देते
दिल में मुहब्बत का
भ्रम रह जाता
..........
सुर्खी है आज
हर एक अखबार में
आदमी का भाव
गिर गया बाज़ार में
......

तुम क्या उठे महफ़िल से
ढूंढता फिर रहा हूँ
जाने कहाँ खो गयी
मेरी ज़िन्दगी
एक बार तुम पलट के देख लो
इस उम्मीद में
दूर तक तुम्हें जाते हुए देखती रही
मेरी ज़िन्दगी
ये मानने में गुरेज़ कैसा
तेरी रहगुजर से जब भी गुजरा हूँ
वहीँ ठहर के रह गयी
मेरी ज़िन्दगी
न कोई उमंग,न कोई ख़ुशी
में जिंदा हूँ पर कहाँ है
मेरी ज़िन्दगी
आज पूछते हो तो सुनो
मेरे जीने का राज़
जादूगर की जान सी तुझ में रहती है
मेरी ज़िन्दगी

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इस शहर की भीड़ में
अब कहाँ दोस्त भी
दोस्त की तरह मिलते हैं.
यूँ तो सारे अज़ीज़ इसी शहर में हैं
ज़माना कुछ ऐसा बदला है
काम पड़े तभी
दोस्त की तरह मिलते हैं.
शहर भर में बदनाम हो गये
हम अपनी आदत से परेशाँ
जिससे मिलते हैं
दोस्त की तरह मिलते हैं.
कोई क्या दोस्ती निभाये इस दौर में
बचपन के दोस्त भी अब कहाँ
दोस्त की तरह मिलते हैं.
अपना शहर छोड़ तेरे शहर में आ गये
बड़ा सुकून है दिल को
तेरे यहाँ तो अजनबी भी
दोस्त की तरह मिलते हैं.
..........


मैं क़यामत तक करता तेरा इंतज़ार
पर सब कहते हैं इंसान की एक उम्र होती है.
कितने ही पक्के क्यों न हो सब कहते हैं
रिश्तों की एक उम्र होती है.
नादाँ हैं वो जो सोचते हैं
बिगड़ने की एक उम्र होती है.
सच तो यह है सुधरने की एक उम्र होती है.
.......


एक लम्हे को तुमसे मिले
और क्या से क्या हो गयी
मेरी ज़िन्दगी.
चाहत ने दी चाहत
दर चाहत और ज्यादा
अज़ब अनकही प्यास हो गयी
मेरी ज़िन्दगी.
...........


तमाम उम्र तेरी चाहत में बनते सँवरते रहे
हम दुनिया से बेखबर थे, बेखबर रहे
लाख चाह कर भी हम तेरे जैसे न बन सके
कहीं भी रहे हमेशा खबर में रहे.
देर सबेर मंजिल मिल ही जाती गर सरे-राह होते
पर क्या कीजे तुमसे मिलने की धुन में
हम तमाम उम्र सफ़र में रहे.
...........


सदियों मेरी चाहत,मेरी बेखुदी का
सिलसिला रही है तू
तेरे दम से रही रगे-जां में हरकत
मेरी ज़िन्दगी का हसीन वलवला रही है तू
मेरे दर्द को एक हस्ती अता की
सचमुच बड़ी करमफरमा रही है तू
यूँ इसे मत तोड़ कुछ तो ख्याल कर
आखिर ज़िन्दगी भर इसी दिल में रही है तू.
............


उसके मिजाज़ को हमसे बेहतर कौन समझा है
हमने उसका हर नाज़ उठा रखा है.
अब ये भी नहीं हम कभी खफा ही न हों
बस इतना है हमने ये काम कल पे उठा रखा है.
ज़ज्बा-ए-इश्क फलफूल रहा है आज भी
कहने को इसने आसमान सर पे उठा रखा है.
अपनी बंदगी खुद करा लेती है
क़ाफ़िर जवानी ने वो अहद उठा रखा है.
.....


तुम चले आओ ख़त पाते ही
जहाँ तक बादल हैं रास्ता साफ़ है
और आज धूप भी नहीं
समुद्र हिलोरें ले रहा चांदनी से मिलने को
दूर बस एक अकेली नाव है
और आज धूप भी नहीं
कोयल की कूक है नए फूल और खुश बहार है
कुछ मेरा भी ख़ुशी पर हक है
और आज धूप भी नहीं
तमन्ना जवान है,दिल पे काबू
न कल था न आज
और फिर आज तो धूप भी नहीं.
.....


ठण्ड से मर गया कल रात एक भिखारी
कम्बल ले कर देर से आये
नेता जी मेरे शहर में.
अंधे कुँए में फिर एक लाश मिली है
रोटी का ब्याज शरीर से लेते हैं
महाजन मेरे शहर में.
कुछ ज्यादा ही डरे डरे हैं लोग
पुलिस मना रही है शालीनता
सप्ताह मेरे शहर में.
भयानक चेहरों को देख, नाहक ही डर गये लोग
हर चेहरे पर दूसरा चेहरा
लाजिमी है मेरे शहर में.
........


अपने पुराने कागजों में ढूँढना
शायद मेरा पता निकल आये
सज़ा पर नहीं शिकवा मुझे
अपने गरेबां में एक बार झाँकना
कौन जाने शायद
तुम्हारी ही खता निकल आये
आज से मैखाना बंद है
इस ऐलान के नहीं पाबन्द हम
मेरे लायक तू चाहे तो साक़ी
तेरी आँखों में ही निकल आये
शहर में मेरे दुश्मनों की
सरगर्मी बताई जाती है
ढूँढने चला तो सब
पुराने दोस्त निकल आये.
........


फुर्सत कहाँ उसे जो तेरे तेरे गम की दास्ताँ सुने
यार तूने किसी और को अपना हमनवां बनाया होता
उनसे नज़रे इनायत की उम्मीद
जो खुद ही नज़र चुराते हैं ज़माने की नज़र से
यार तूने किसी और को अपना निगहेबां बनाया होता
सोचा वो रो देंगे मेरी तारीकी ज़िन्दगी सुनकर
और वो खिलखिला कर हँस पड़े
यार तूने किसी और को अपना फ़साना सुनाया होता
इस नियामत के तमन्नाई ही रहे ताउम्र
रूठे रहते हम और यार ने भी कभी मनाया होता
...........
जहाँ रहती हों आबादियों खंडहरों में
मुझे ले चलो उन्ही हसीन शहरों में
जिस्म की क़ैद से मैं निजात पा जाता
मेरे शहर में तो ख्यालात भी रहते हैं पहरों में
दरिया को आज फिर किसी सैलाब का डर है
भूखी माँ कल बच्चों सहित डूबी है लहरों में
लोग कहते हैं वो जन्म से अंधा था
फिर रात रात किसे ढूंढता था वो भीड़ के चेहरों में .

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दरमियाँ मेरे तुम्हारे
दुनियां भर का दस्तूर था
में तेरे साथ रह कर भी
तुझ से बहुत दूर था
दौलत-ए-वफ़ा में यूँ तो
कमतर न थे हम
पर जिस बस्ती में दिल आया वहां अभी
सोने के सिक्कों का ही चलन मशहूर था
तुम इतने मेहरबाँ रहे मुझ पर
सच कहता हूँ
खुदा से कहीं ज्यादा
मैं तेरा मशकूर था
सब तेरे झूठ को भी
सच मानते हैं इस शहर में
शायद तुझ में खुदा का
ऐसा ही कुछ नूर था
गर में जानता मेरे मरने से
होगी तुझे मसर्रत हासिल
यकीन जान यह मरना मुझे
बाखुशी मंजूर था
किस की क्या ख़ता थी
अब यह चर्चा बेमानी है
मैं तो वसीयत में लिख चला हूँ
फ़क़त मेरा कसूर था
.........


वो आये ही जाते हैं,
ऐ उम्मीद न जा
यूँ छोड़ कर, ठहर
अभी कुछ देर और.
शाम का वादा था
रात जाने को है
वो आते ही होंगे, ऐ शमा जलो मेरे साथ
अभी कुछ देर और.
मैं तेरी जुदाई के
ख्याल से हूँ अश्कबार
रो लेने दो
अभी कुछ देर और.
एक उम्र के इंतज़ार के बाद आया है
न जाने फिर कब आना हो तेरा
ऐ सावन बरस
अभी कुछ देर और.
खामोश,गुमसुम देख
मुहब्बत का गुमां होता है
यूँ ही रहो खफा
अभी कुछ देर और.
जुदाई की शब है,फिर मिले न मिले
जज्ब कर लूँ हर अदा,याद कर लूँ हर वाक़या
बैठी रहो मेरे पहलू में
अभी कुछ देर और.

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तुम्हारे भरोसे पर जिये हम
मालूम न था
तुम मुंह मोड़ लोगे
यारों की तरह
इस उम्मीद में हर बार
तेरी महफ़िल में चले आये
कभी शायद तू भी मेहरबाँ हो जाए
गैरों की तरह
तुमसे अच्छी है
मेरी तन्हाई
आ के जाती तो नहीं
बहारों की तरह
मेरे दिल की शख्सियत नायाब है
उम्मीद बांधे रहा
मालूम था टूट जायेंगी
ख़्वाबों की तरह
कैसे कह दूं बेहतर है
ऐ मौत तूने भी तो
कम नहीं तड़पाया
ज़िन्दगी की तरह .
......


रिश्ते तो तह करके रख दिए हैं हमने
कल के अखबार की तरह
कुछ चीख चीख कर कुछ चुपचाप
हर एक अपना ज़मीर बेच रहा है
शाम के अखबार की तरह
टूटी हुई असलियत को जोड़ने
ऐ उम्मीद तू क्यों चली आती है हर
सुबह के अखबार की तरह
इस अध पढ़े इतिहास का बोझ कब तक उठाऊं मैं
ऐ मौत तू ले जा मुझे
मोहल्ले के अखबार की तरह .

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या झुका ही लो इन पलकों को
या उठा ही लो इन पलकों को
मगर ऐ मेरी जान-ऐ-बहारा
नज़रों को यूँ आधी झुका न रखो.
या खिलखिला कर फिजा में
बिखेर दो चश्म-ऐ-नूर के
या होठों को बंद कर पैदा कर दो
मंजर समंदर की सजीदगी के
मगर यूँ दबी-दबी मुस्कराहट
होठों पे रखा न करो
या हम पर नज़र ही न डाला करो
या भरपूर एक नज़र देख लो
यह शौके नज़र का क्या दस्तूर है
देख देख कर अनदेखा न करो
या हमारी तुम तवज्जुह छोड़ दो
या फिर मुझसे ही बयान
मेरे हिज्र-ऐ-वीरां का सुनो
इस बेताबी को क्या नाम दूँ मैं
राह चलतों से मेरा हाल पूछा न करो
ऐ मेरी जान-ऐ-बहारा
नज़रों को यूँ आधी झुकी रखा न करो.
..........
तेरी मुहब्बत का यही दस्तूर है तो यूँ ही सही
बहार पर रहे तेरा मुक़म्मल अख्तियार
वीरां से मुहब्बत की तोहमत
मेरे सर पर ही सही.
आजिज़ है मेरे खतों से तेरा कासिद
फिर तुझे मेरा ख्याल आये न आये
तेरे एक ही ख़त को सुबह-शाम पढ़ना
मेरी किस्मत ही सही.
तेरे ये चंद ख़त मेरी
ज़िन्दगी भर की दौलत है
इन्हें मेरे पास ही रहने दे,तेरा यह
मुझ पर एक और अहसान ही सही
तेरी मुहब्बत . .
यूँ तो तेरी याद काफी थी
शायद मेरा अँधेरा ही गहरा हो
चलो यह भी इलज़ाम
मुझ पर ही सही .
मुझे तू ही नहीं वह ज़हर भी प्यारा है
जो तेरे दस्त-ऐ-नाज़ुक से आये
अब चाहे तुझे मुझ से मेरे सेहरा से
अदावत ही सही
कागज़ की दौलत से तेरी
दुनिया के कारोबार चला करते हैं
तेरी नज़र में मैं मुफलिस हूँ
मुफलिस ही सही
तू आबाद रहे शादाब रहे
रंजोगम के साए से दूर
मेरे अरमानों पे तेरी बेरुखी का क़फ़न ही सही

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सिमट गया हर शख्श
बस अपने ही दामन में
वक़्त के साथ कितने बदले हैं
हम जनाब देखिये .
उधार मंगाई है पेट की आग
हाथ तापने को
महाजन से आये है
क्या जवाब देखिये
इस दौर में या तो हम रहेंगे
या हमारी भूख
किस को है लम्बी
उम्र दराज देखिये
नफरत के खेमे गड़े हैं
कल थीं जहाँ बस्तियां बंजारों की
बिखरा पड़ा चारों ओर
मुहब्बत का असबाब देखिये .
मौत की तरह तेरा आना भी तय नहीं
फिर भी मुन्तज़र दिले बेताब देखिये
चाहत का सब्र से कोई सरोकार नहीं होता
बेख़ौफ़ उमड़ता मेरी हसरतों का सैलाब देखिये
या तो हम तुम्हारे हैं
या गलत दरवाजे पर दी है दस्तक
अब खोलिए भी दिल की किताब
और मेरा हिसाब देखिये

.......



तुम्हारी आँखों में मिले
रास्ते मुझे मेरी ख़ुशी के
तुम्हें देख के जो हूँ मैं अश्कबार
कुछ और नहीं ये हैं आंसू मेरी ख़ुशी के
तुम मुस्कराईं थीं कल मेरे सपने में
कुछ और बढ गये आज दायरे मेरी ख़ुशी के
तुमसे मैं नाराज़ होऊंगा आखिर क्यों
जब कि तुम ही हो सबब मेरी ख़ुशी के
उचटती निगाह से तेरा एक नज़र देखना
कितनी आसानी से सुलझ गये
तिलिस्म मेरी ख़ुशी के
बस यूँ ही आँखों मैं आँखें डाले बैठे रहो
कुछ और बढ़ा दो दिन मेरी ख़ुशी के
जब तलक तू जवां न थी गुलशन को गुरूर था
अब तो कहता फिर रहा है गिनती के रह गये
दिन मेरी ख़ुशी के
ज़िन्दगी का सार ढूंढता फिरा
मयखाने-मयखाने
जबकि तेरे होठों मैं ही
छुपे थे खजाने मेरी ख़ुशी के .
...........


सन्नाटे ने हवाओं के हाथ खबर भेजी है
कहीं आस पास ही है तूफ़ान

मेरे शहर में
मैं आता तुम्हारी इमदाद को मगर क्या कीजे
मदद करना मना है ये है नया फरमान

मेरे शहर में
जब से सुना है महँगे बिकने लगे हैं मुर्दे
महफूज़ नहीं रहा कब्रिस्तान

मेरे शहर में
मंजिल दर मंजिल खड़ी हैं इमारतें,ज़मीन कहाँ
अब तो तकसीम कर रहे हैं लोग,आसमान

मेरे शहर में
उसका इन्साफ समझ पाए,है किस में इतनी कुव्वत
ज़लज़ले में जो गिरा,मकान वो ही था आलीशान

मेरे शहर में.
हर एक गरेबां चाक,हर सू हैं खून के छींटे
कोई रियायती दाम पर बेच गया है,मौत का सामान

मेरे शहर में .

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