Tuesday, October 30, 2012


किस करवट भी सोऊँ ज़ख्मों में दर्द होता है

जहां दिल था कभी वहां टाँकों में दर्द होता है

ये कहां ले आयी मुहब्बत तेरी ?

हर शाम जब तक रोऊँ नहीं आंखों में दर्द होता है

वो जो ज़िंदग़ी बताता फिरता है मुझे

तुम्हें क्या पता रोज़ कितनी मौत मारा करता है मुझे

बात न करने की कसम उसने ज़िंदगी भर निभाई

मेरी मौत से पहले उसे मेरी याद ही न आई  

नज़ाक़त से जरा भर सरकाया मेरे क़फन को,

कुछ इस तरह  हुई  मेरी रस्मे मुंह दिखाई

Saturday, October 27, 2012


मौसम कोई हो, ज़ख्मों में दर्द सा रहता है

जहाँ दिल था कभी, टाँकों में दर्द सा रहता है

ये किस मुक़ाम पर ले आयी मुहब्बत तेरी
 
जब तक रो न लूं, आँखों में दर्द सा रहता है  

Monday, October 8, 2012

जो तुम्हारी आँखें बोलती हैं
मेरे लब बोल नहीं पाते
मेरे ख्वाब भी तेरी अदा सीख गये
हमेशा जाने की जल्दी और बुलाने पे कभी नहीं आते

Wednesday, October 3, 2012


कहने को वो हर बार घड़ी दो घड़ी को रूठते हैं

पर हर बार एक उम्र लग जाती है उन्हें मनाने में