Monday, June 21, 2010

सीपी मोती भरी


एक पूरी पीढ़ी ही अनपढ़ रह गयी

कम्प्युटर लेकर देर से आए नेता जी

मेरे शहर में.

भ्रष्टाचार की आग फैली है सब ओर

फायर ब्रिगेड कौन बुलाये, सन सेंतालीस से खराब हैं टेलीफ़ोन

मेरे शहर में.

अभी नेताजी अफ्रीका समस्या उठा रहे हैं अमरीका में

हो रहें हैं तो होते रहें कत्ल इंसान

मेरे शहर में.

बाज़ार भाव बहुत नरम है

गुर्दा देखेंगे या खून लेंगे

आदमी की भारी सेल लगी है

मेरे शहर में.



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देवदार के वृक्ष तले

निशा जब पलक खोले

प्रिय आकर मिलना

दूर पपीहा जब बोले

जब हो संध्या उदास-उदास

कोई न हो नयन वातायन के पास

प्रिय आकर मिलना

जब टूट जाये अपनों का विश्वास

समाज का कोई रिवाज जब तुम्हें घेरे

अग्नि बाध्य करे लेने को फेरे

प्रिय आकर मिलना

जब दूर हों मुक्ति के सवेरे

व्यर्थ लगे जब यौवनावकाश

क्रूर काल देने लगे अपना आभास

प्रिय आकर मिलना

जब शृंगार करे तुम्हारा उपहास

बुझ चुके हों जब सारे दीप

बिछुड़ जाए मोती से सीप

प्रिय आकर मिलना

जब प्रलय हो समीप


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दुनियाँ की इस भीड़ में

औरों के दर्द से कराह रहा हूँ मैं

किसी का बनने की चाह में

अब अपना भी नहीं रहा हूँ मैं.

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मेरे मर्ज-ए-इश्क़ की दवा हो गयी

हिज्र की रात की आखिर सुबह हो गयी

मैं क़ाफ़िर हूँ, क़ाफ़िर ही सही

मेरी तो महबूब ही मेरी खुदा हो गयी.

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माली ने लूटा है आशियाँ मेरा

मेहरबानों ने लूटा है जहाँ मेरा

हमसफ़र थे जो कल तलक

आज उन्ही ने लूटा है कारवाँ मेरा

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दवा मत दे मुझे मर्ज कुछ तो रहने दे

करार मत दे मुझे दर्द कुछ तो रहने दे

इतनी मेहरबान न हो मुझ पर

इंसान और खुदा में फर्क कुछ तो रहने दे

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मेरे मंदिर की तू प्रतिमा

मेरी महफिल की तू शमा

कहाँ नहीं तू मौजूद

मैं शरीर तू आत्मा

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अपने सपनों का नायक बना लो मुझे

अपने गीतों का गायक बना लो मुझे

मैं तो बस ये चाहता हूँ

किसी भी तरह अपने लायक बना लो मुझे


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मंदिर के बाहर भिखारियों को देख

लौट आया हूँ मैं

ये सोच के कि मंदिर में जाते हैं वही

जिनके दिल में भगवान नहीं


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तुम यूँ तो उस रात मेरे शहर में न थे

फिर भी गुनगुनी धूप का सुगंधी एहसास था

तुम मना कर गए थे तो क्या

फिर भी आओगे ये मेरा अंधविश्वास था

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तेरे नाम से होती है सुबह अपनी

तेरे नाम से होती है सहर अपनी

अब तो तेरी याद बन गयी है

ज़िंदगी भर की धरोहर अपनी

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कभी तुम से सुलह की

कभी खुद से जिरह की

गरज कि हर शब-ए-गम की

हम ने रो रो के सुबह की

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हर सुबह कोहरा क्यूँ है

हर रात अमावस क्यूँ है

तुम रोशनी का वादा ले उतरे थे ज़िंदगी में

फिर भी यह दिल उदास क्यूँ है.

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क्यों दुहाई देते हो

उनकी नाजुकी और दरियादिली की

दरअसल सच के और नज़दीक लगता है

गर पत्थर में तराशो मेरे महबूब को

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तुझे क्या खबर तुझ से मुलाकात के

क्या क्या आसार खोजा करता हूँ मैं

मनाता हूँ तू कुछ भूल जाए

और आधे रास्ते देने आऊँ मैं.


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नवजात बच्चों की

लाशें मिली हैं

मेरे शहर का

आईना है ये झील


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आज इन गेसूओं में खो जाने दो मुझे

आज इन आँखों में डूब जाने दो मुझे

फिर तुम न जाने किस जनम में मिले

आज इस चेहरे पर मिट जाने दो मुझे


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यूँ तो दिल और भी टूटे थे इस दुनियाँ में

फर्क बस इतना था

उनके शीशा-ए-दिल पत्थर ने तोड़े थे

और मेरा पत्थर दिल शीशे ने तोड़ डाला

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ज़ुल्फ़ के साये देखे हैं हमने

बाहों के दायरे देखे हैं हमने

ओ नाजनीन ! सुनो जरा

तुमसे पहले भी हसीं देखे हैं हमने

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आज खुल जाने दो जुल्फों को

आज टूट जाने दो गजरे को

फिर नज़र अफ़साना-ए-दिल न कह पाएगी

आज बिगड़ जाने दो कजरे को

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बाद-ए-सबा ने भेजे हैं सलाम तुझे

रिमझिम फुहारों ने भेजे हैं सलाम तुझे

इक बार नज़र उठा के मेरा भी सलाम ले

ये माना सितारों ने भेजे हैं सलाम तुझे

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दूर क्षितिज पर जब दिन ढले

साँसों के स्पर्श से जब तन जले

आओ समाज की सीमा से आगे बढ़ चलें

और उस नीम के वृक्ष तले हमतुम गले मिलें

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बहार पर कर्ज़ है तेरी नज़रों का

रात चुरा रही है रंग तेरे कजरे का

संभाल अपनी जुल्फें

गुलशन उड़ा रहा है नूर तेरे गजरे का



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निकला था सफर पर मैं

पा के हमसफ़र इतने सारे

इक मोड़ पर देखा जो पीछे

साथ मेरे गुबार-ए-कारवाँ भी न था.

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मेरी मौत की खबर सन

यार ने कुछ यूँ मुँह छुपाया

कोई जान न पाया

वो रोया है या मुस्कराया

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शुक्रगुजार हूँ तुम्हारी इन आँखों का

आज फिर उन्होने

मेरे बहकने का इल्ज़ाम

अपने सर ले लिया

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पपीहे की रटन से

चूल्हे की घुटन

तक की दूरी ने

छीन लिया

तुम से तुम्हारा यौवन

मुझ से मेरा दीवानापन.

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