Sunday, June 13, 2010

भूले-बिसरे

ये ज़िंदगी छोटी है निकलने को इस तिलिस्मी जहाँ से
हसरतों के सैलाब उमड़ते रहे धुआँ-धुआँ से
तस्सुवर में भी सरगोशयों के आदाब हुआ करते हैं
हर सोनेवाले के नसीब में नहीं हसीन सपनों के खजाने
चेहरे से लगाया था अंदाज़ उनकी शराफत का
किस से करें गिला,शह से पहले ही हम मात खा गए
अरे ओ मुँह फेर के जाने वाले, जान ले इतना
काफिले अभी और भी गुजरेंगे मेरी राह से
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मुझे यह प्रयोग भी कर लेने दो
जीवन बीता बाट जोहते
पाने जिस एक क्षण को बढ़ आया आगे मैं,
छोड़ एक युग ,पीछे आ पहुँचा है वह क्षण प्रिय मत रोको
वियोग में तपी है उम्र सारी
आज मुझे संयोग भी कर लेने दो.
मुझे यह प्रयोग....
है दर्द न कोई जगत में जिसकी दवा नहीं
दर्द से पा गया मुक्ति वही जो जगत में रमा नहीं
है बीता जीवन मेरा उपचार में
प्रिय आज मुझे यह रोग सर लेने दो
मुझे यह प्रयोग...
दी प्रकृति ने वाणी मुझे केवल बुद्धि का गान करने को
नहीं हुई अभी वह लिपि विकसितहृदय का ध्यान धरने को
रहे विमुख हृदय उद्गारों से अंग मेरे
ए मेरे चेतन, अवचेतन आज मुझे हृदय से संयोग कर लेने दो
मुझे यह प्रयोग..
मेरे अंतस की पीड़ा ने सीखा दिया मुझे मौन रहना
जग समझा इसे मेरा अहम में बहना
मेरे प्रेम को वैर रहा वाणी से
मेरे प्रेम को तो प्रेम रहा मात्र प्राणी से
जब तुम ही न जान सके तो और जानेगा कौन
हाय मेरा शत्रु बन गया मेरा ही मौन
" मैं तुम्हें प्यार करता हूँ "
चलो मुझे यह ढोंग भी भर लेने दो
मुझे यह प्रयोग भी कर लेने दो
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मेरा जीवन एक लंबा सिलसिला है यातनाओं का
मेरी दुनियाँ में भला क्या काम है भावनाओं का
तुम फूलों में पली, मैं काँटों में
तुम्हारी हर इच्छा पूरी हुई मैंने गला घोंटा है अपनी कामनाओं का
दुख और बेबसी के संयोग से जन्मा
हाँ मैं ही हूँ वो मनु-पुत्र छलनाओं का
यह सब किताबों में होता है तुम मेरा साथ कब तक दोगे
संसार तेरा है, मेरा नहीं यह कल्पनाओं का
मेरा जीवन एक लंबा सिलसिला है भावनाओं का
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बिताये हैं रात्रि के पहर सारे
गिन गिन के आकाश के तारे
अश्रुपथ बुहारते रहे
कान जोहते रहे कोई अब पुकारे.
निशा ने प्रभात से मिलने को
क्या मुझसे अधिक आँसू बहाया है
किन्तु फिर भी भोर ने आकरअपना वचन निभाया है.
और कितने युग बितायें हम प्रतीक्षा में तुम्हारी
अब तो आ जाओ कि पूरब दिशा हँस रही प्रीत पर हमारी
पक्षीगण उड़ चले मुझे दे उलाहने
चाह को पुनः दंडित किया व्यथा ने
मेरे श्वास निश्वास में बसे हो तुम
कुछ तुम भी मुझे याद कर लो
मैं और कितना अपना दर्द कहूँ
कुछ तुम भी मेरे आँसू का अनुवाद कर लो
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कैसे कैसे लोग बेशरमी से उनका ज़िक्र करते हैं
जब से उनको शरमाना आ गया
आँख क्यूँ अब उनसे हटती ही नहीं
जब से उनको नज़रें झुकाना आ गया
सरे शाम लो रात हुई जाती है
उनको ज़ुल्फ़ लहराना आ गया
समंदर की गहराई है उनकी आँखों में
अब उन्हें भी राज़ छुपाना आ गया
मेरा महबूब उतर रहा है डोली से
मेरे घर में भी मौसम सुहाना आ गया
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किसी खुशनुमा शाम को और खुशनुमा बनायें
चलो एक शाम हम साथ साथ बितायें
न मैं कहूँ तुम्हें ज़िंदगी न तुम कहो मैं तुम्हारा सबकुछ
न हम साथ साथ जीने मरने की कसमें खायें
चलो एक शाम हम साथ साथ बितायें
किसी खुशनुमा शाम को और खुशनुमा बनायें
न तुम मेरे लिए ज़माने से करो बगावत
न आसमां इतना करीब कि तारे तोड़ लाएं
एक दूसरे को बेहतर जानें इस समझ के सिलसिले जमाये
किसी खुशनुमा शाम को और खुशनुमा बनायें
न कोई आरज़ू, न कोई इसरार हो
न हम एक दूसरे की कमियाँ गिनायें
हँसें,चहकें, और मिलके गायें
एक शाम ऐसी भी हम साथ साथ बितायें
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