Saturday, September 8, 2018


एक जन्म में पता ढूंढ पाऊं ये मुमक़िन नहीं
मुझे मक़तल ले गया वो रस्ते बदल-बदल के
कभी कटार अब्रू की, कभी पेचो-खम ज़ुल्फ के
सितम ढाये हैं उसने अस्लाह बदल बदल के
नज़र झुका ली, कभी गर्दन, कभी बस मुस्करा दिये
यूँ मय पिलाई है उसने ? पैमाने बदल बदल के
वो बेखबर मुझे नज़र अंदाज करता भी क्यूं कर
जाना कहीं हो, जाता था उसकी रहगुजर पे रस्ते बदल-बदल के  

Saturday, July 21, 2018

काली साड़ी


उम्र छोटी ज़रूर है
कैसे न कैसे कट जायेगी
तुम्हें खुदा का वास्ता
ये काली साड़ी पहना न करो

आँखें नशीली, ज़ुल्फ परीशां
खामोश लब औ न जाने
क़त्ल के सामां क्या-क्या बस
ये काली साड़ी पहना न करो

ये हया, ये अदा, ये तबस्सुम
पेशानी पे बेचैन ज़ुल्फ का लहरा
सीख लिया है इनसे बच निकलना
ये काली साड़ी पहना न करो

मुक़द्दर की तारीक़ी क्या कम है
मेरा नसीब मुझे मुहब्बत मिली ही कम है
सज़ा जो माकूल लगे क़बूल है बस
ये काली साड़ी पहना न करो


Friday, July 6, 2018

उसने मुझे बारहा सताया है बहुत 
आज भी वो बेवफा प्यारा है बहुत 
प्यार का था तो क्या हुआ ?
मौसम तो फिर मौसम था, बदल गया 
सितमग़र बदलेगा ! मुझे यक़ीं था
मेहरबां ने नाचीज़ को, वक़्त दिया है बहुत
आज भी सपने देखता हूं
चाहे, अनचाहे देखताहूं
बस एक ही सपना है जो सच होता है
कभी ट्रेन छूट जाती है, कभी ग़लत ट्रेन
कभी सही ट्रेन, ग़लत स्टेशन पर उतार देती है
जाने वो सपना कब आयेगा जब सही ट्रेन 
सही समय सही स्टेशन पर उतारेगी
और जब तक ये सपना नहीं आता 
मैं लौट आऊंगा और फिर सपने देखूंगा
सपने देखता हूं इसलिये मैं जीता हूं
सपने देखता हूं इसलिये मैं हूं