एक जन्म में पता ढूंढ पाऊं ये मुमक़िन नहीं
मुझे मक़तल ले गया वो रस्ते बदल-बदल के
कभी कटार अब्रू की, कभी पेचो-खम ज़ुल्फ के
सितम ढाये हैं उसने अस्लाह बदल बदल के
नज़र झुका ली, कभी गर्दन, कभी बस मुस्करा दिये
यूँ मय पिलाई है उसने ? पैमाने बदल बदल के
वो बेखबर मुझे नज़र अंदाज करता भी क्यूं कर
जाना कहीं हो, जाता था उसकी रहगुजर पे रस्ते बदल-बदल के
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