Friday, October 21, 2011

चिंगारी दबेगी नहीं इसलिये
शोलों को हवा दी है सनम
आप नाज़ुक हैं या नाज़ुक है नर्गिस का बदन
अक्सर फूलों से ये जिरह की है सनम
तुम पहले ही कब आए जो इस रात आओगे
फिर भी उम्मीद में सुबह की है सनम
यहाँ संभले वहाँ गिरे जाम पर जाम पिये
कुछ यूँ भी अपने मर्ज की दवा की है सनम
दिल पे तो भरोसा था ही कब
आँखों ने भी बेवफाई की
आपकी तस्वीर अशकों ने मिटा दी है सनम
जब से देखा है आपको रक़ीब के पहलू में
तब से दुश्मन को भी दुआ दी है सनम

2 comments:

  1. अत्यंत सुन्दर ..

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  2. आपको पसंद आई.बहुत बहुत शुक़्रिया

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