आईने से तमाम उम्र छुपते रहे
शीशमहल में रहने वाले
एक छोटी सी खुशी सह न पाये
ज़िंदगी भर दुख सहने वाले
अज़ब चलन है दुनियाँ का यारो
ताउम्र इसे कोसते रहे इसमें रहनेवाले
किस उम्मीद पर तूने बाँधी है उम्मीद
मेरे दोस्त ये मकां तो हैं जल्द ढहने वाले
जब तलक खामोश पीते रहे सब बेखबर थे
रस्म तो निभा रहे हैं तुम्हारे अश्क बहने वाले
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