Thursday, November 4, 2010

कुछ गज़ब नहीं होता

कोई अजब नहीं होता
कुछ गज़ब नहीं होता
कमाल है अब किसी बात पर
ताज्जुब नहीं होता

अपने बुजुर्ग की हत्या
जिगर के टुकड़े की बलि
पत्थरों के शहर में अब किसी को
दुःख नहीं होता

कैसे चले दूकान
आईनों की, अंधों के शहर में
क्या हैरत गर किसी का इधर
रुख नहीं होता

मर जायेंगे तुम्हारे बगैर
जी न पाएंगे तुम्हारे बगैर
सच है, मगर बार बार ये दोहराना
शुभ नहीं होता

1 comment:

  1. अपने बुजुर्ग की हत्या
    जिगर के टुकड़े की बलि
    पत्थरों के शहर में अब किसी को
    दुःख नहीं होता
    saral shabdon mein gehri baatein... main bhi pahli kavita padhte padhte itni gehrai tak aa gaya...aapke blog pe aake accha laga.aapka bhi swagat hai..kabhi samay ho to aayiyega

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