Sunday, May 9, 2010

सुनहरी धूप ..

सिमट गया हर शख्श
बस अपने ही दामन में
वक़्त के साथ कितने बदले हैं
हम जनाब देखिये .
उधार मंगाई है पेट की आग
हाथ तापने को
महाजन से आये है
क्या जवाब देखिये
इस दौर में या तो हम रहेंगे
या हमारी भूख
किस को है लम्बी
उम्र दराज देखिये
नफरत के खेमे गड़े हैं
कल थीं जहाँ बस्तियां बंजारों की
बिखरा पड़ा चारों ओर
मुहब्बत का असबाब देखिये .
मौत की तरह तेरा आना भी तय नहीं
फिर भी मुन्तज़र दिले बेताब देखिये
चाहत का सब्र से कोई सरोकार नहीं होता
बेख़ौफ़ उमड़ता मेरी हसरतों का सैलाब देखिये
या तो हम तुम्हारे हैं
या गलत दरवाजे पर दी है दस्तक
अब खोलिए भी दिल की किताब
और मेरा हिसाब देखिये

.......
तुम्हारी आँखों में मिले
रास्ते मुझे मेरी ख़ुशी के
तुम्हें देख के जो हूँ मैं अश्कबार
कुछ और नहीं ये हैं आंसू मेरी ख़ुशी के
तुम मुस्कराईं थीं कल मेरे सपने में
कुछ और बढ गये आज दायरे मेरी ख़ुशी के
तुमसे मैं नाराज़ होऊंगा आखिर क्यों
जब कि तुम ही हो सबब मेरी ख़ुशी के
उचटती निगाह से तेरा एक नज़र देखना
कितनी आसानी से सुलझ गये
तिलिस्म मेरी ख़ुशी के
बस यूँ ही आँखों मैं आँखें डाले बैठे रहो
कुछ और बढ़ा दो दिन मेरी ख़ुशी के
जब तलक तू जवां न थी गुलशन को गुरूर था
अब तो कहता फिर रहा है गिनती के रह गये
दिन मेरी ख़ुशी के
ज़िन्दगी का सार ढूंढता फिरा
मयखाने-मयखाने
जबकि तेरे होठों मैं ही
छुपे थे खजाने मेरी ख़ुशी के .
...........
सन्नाटे ने हवाओं के हाथ खबर भेजी है
कहीं आस पास ही है तूफ़ान मेरे शहर में
मैं आता तुम्हारी इमदाद को मगर क्या कीजे
मदद करना मना है ये है नया फरमान मेरे शहर में
जब से सुना है महँगे बिकने लगे हैं मुर्दे
महफूज़ नहीं रहा कब्रिस्तान मेरे शहर में
मंजिल दर मंजिल खड़ी हैं इमारतें,ज़मीन कहाँ
अब तो तकसीम कर रहे हैं लोग,आसमान मेरे शहर में
उसका इन्साफ समझ पाए,है किस में इतनी कुव्वत
ज़लज़ले में जो गिरा,मकान वो ही था आलीशान मेरे शहर में.
हर एक गरेबां चाक,हर सू हैं खून के छींटे
कोई रियायती दाम पर बेच गया है,मौत का सामान मेरे शहर में .

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