Sunday, May 30, 2010

अब जीने के यही कुछ असबाब हैं

मेरे सिरहाने तेरे कुछ ख्वाब हैं

गँवा के खुद को, तुझे पाया है

तब जाकर कहीं होश आया है

क्या कुफ़्र है ? और क्या इबादत ?

ये कब कोई जान पाया है ?

तुम महफ़ूज रहो अपने

रिवाज़ों की दुनिया में !

यादें,आँसू,आहें,ज़ख्म दिल की बस्ती में

भला किसने क्या पाया है

तारों की इन नज़रों को पहचान सखि !

चाँद की मुस्कराहट का अर्थ जान सखि !

कुछ सोच ! क्या तोड़ने के

लिए ही हैं मेरे अरमान सखि !

तारों की इन नज़रों को..

कुछ करो कि ये उम्र ठहर जाए

कुछ करो कि ये समय का चक्र ठहर जाए

हम-तुम रहें सदा

अब जैसे जवान सखि !

तारों कि इन नज़रों को...

इसलिये तो नहीं मेरे प्राण छटपटाए

इसलिये तो नहीं मैंने गीत बनाये

मैं तेरी याद में सुध-बुध खो बैठूँ

तू गुनगुनाए किसी और का गान सखि !

तारों की इन नज़रों को पहचान सखि !

चाँद की मुस्कराहट का अर्थ जान सखि !

Sunday, May 9, 2010

सुनहरी धूप ..

सिमट गया हर शख्श
बस अपने ही दामन में
वक़्त के साथ कितने बदले हैं
हम जनाब देखिये .
उधार मंगाई है पेट की आग
हाथ तापने को
महाजन से आये है
क्या जवाब देखिये
इस दौर में या तो हम रहेंगे
या हमारी भूख
किस को है लम्बी
उम्र दराज देखिये
नफरत के खेमे गड़े हैं
कल थीं जहाँ बस्तियां बंजारों की
बिखरा पड़ा चारों ओर
मुहब्बत का असबाब देखिये .
मौत की तरह तेरा आना भी तय नहीं
फिर भी मुन्तज़र दिले बेताब देखिये
चाहत का सब्र से कोई सरोकार नहीं होता
बेख़ौफ़ उमड़ता मेरी हसरतों का सैलाब देखिये
या तो हम तुम्हारे हैं
या गलत दरवाजे पर दी है दस्तक
अब खोलिए भी दिल की किताब
और मेरा हिसाब देखिये

.......
तुम्हारी आँखों में मिले
रास्ते मुझे मेरी ख़ुशी के
तुम्हें देख के जो हूँ मैं अश्कबार
कुछ और नहीं ये हैं आंसू मेरी ख़ुशी के
तुम मुस्कराईं थीं कल मेरे सपने में
कुछ और बढ गये आज दायरे मेरी ख़ुशी के
तुमसे मैं नाराज़ होऊंगा आखिर क्यों
जब कि तुम ही हो सबब मेरी ख़ुशी के
उचटती निगाह से तेरा एक नज़र देखना
कितनी आसानी से सुलझ गये
तिलिस्म मेरी ख़ुशी के
बस यूँ ही आँखों मैं आँखें डाले बैठे रहो
कुछ और बढ़ा दो दिन मेरी ख़ुशी के
जब तलक तू जवां न थी गुलशन को गुरूर था
अब तो कहता फिर रहा है गिनती के रह गये
दिन मेरी ख़ुशी के
ज़िन्दगी का सार ढूंढता फिरा
मयखाने-मयखाने
जबकि तेरे होठों मैं ही
छुपे थे खजाने मेरी ख़ुशी के .
...........
सन्नाटे ने हवाओं के हाथ खबर भेजी है
कहीं आस पास ही है तूफ़ान मेरे शहर में
मैं आता तुम्हारी इमदाद को मगर क्या कीजे
मदद करना मना है ये है नया फरमान मेरे शहर में
जब से सुना है महँगे बिकने लगे हैं मुर्दे
महफूज़ नहीं रहा कब्रिस्तान मेरे शहर में
मंजिल दर मंजिल खड़ी हैं इमारतें,ज़मीन कहाँ
अब तो तकसीम कर रहे हैं लोग,आसमान मेरे शहर में
उसका इन्साफ समझ पाए,है किस में इतनी कुव्वत
ज़लज़ले में जो गिरा,मकान वो ही था आलीशान मेरे शहर में.
हर एक गरेबां चाक,हर सू हैं खून के छींटे
कोई रियायती दाम पर बेच गया है,मौत का सामान मेरे शहर में .

मेरे बारेमे

Ravinderkumar
Born on 11th March at Aligarh, UP. Educated in Delhi, Bangalore. Worked as Personnel Officer, HAL,Ojhar, Nasik, Manager (Personnel & Administration) India Tourism Development Corporation, New Delhi. , Indian Railway Personnel Service(IAS allied ) Joint General Manager (Human Resource Management) IRCON International. Chief Personnel Officer & Chief Vigilance Officer Delhi Metro Senior Professor (Organizational Behaviour) Railway Staff College, Vadodara (Gujarat) a premier training institute of India. Presently: Chief Personnel Officer (Admn) at Central Railway Head Quarters, Mumbai C.S.T. BOOKS (poetry) 1.SEEPI MOTI BHARI 2.PANKHURIYAN GULAN KI 3.OS KI BUNDIEN 4.SUNEHRI DHOOP KI CHHAON TALE 5.EHSAAS 6.MERI 101 KAVITAAYEN SATIRES: 1. MISS RISHWAT 2, TIHAR CLUB 3. BALD IS BEAUTIFUL 4. MERA BHARAT MAHAAN 5. MERE 51 VYANG GENERAL : 1. GATT A CRITICAL ANALYSIS 2. EK BAAR KI BAAT HAI 3. RAILWAY KARMIK NIYAMAVALI 4. DID YOU KNOW Writing since childhood.... Awarded Millennium Award 2000 International Hindi Society. Regularly contributing on All India Radio, Mumbai and in magazines and websites India and abroad.