Monday, April 3, 2017

मैं हैरान परीशां हूं कोई नयी बात नहीं
मेरा क़ातिल परेशां है मक़तल बंद देख


हर शख्स यहां पर वास्कोडिगामा, कोलंबस है
आप से काम अटका हो, यही एक शर्त बस है



तुम हौऊ यार क्या तै क्या है गये
कारे कऊआ से हते 'हैन्सम' है गये
जे सहर आ के तुमे का है गयौ कालीचरन
हमें कानोकान खबर हू न भई और
तुम न जाने कब में 'ऑफुल' तै 'ऑसम' है गये



रोटी जैसी छोटी सी चीज़ की फिक़्र न कर
तू ये देख बुत कितना दराज कद है तेरे हक़ में



तमाम उम्र इक इसी ख्वाब ने परीशां रखा
कभी गाड़ी छूट गई, कभी रस्ता भुला गये


नज़रें झुकाये ही कर गये ये हाल दिले बेताब का
नज़रें मिलती तो क्या होता हाल दिले बेताब का



नेकी कर रहा है या तिजारत कर रहा है
वो मुहब्बत भी तोल-माप से कर रहा है
हिसाब मांगे है मुझ से मेरे दिन रात का

नींद चुरा के, चोर सीना जोरी कर रहा है


तेरी मुहब्बत के मारों को दवा न दवाखाना मिला है
अलबत्ता! ज़हर पिया, तब से कुछ-कुछ आराम मिला है




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