ravikikavitayen
Tuesday, June 11, 2013
मत पूछ मुझसे मेरे वस्ल की बात
हिज्र के शिकवों में गुजर गयी रात
जिंदगी लौटी मायूस उसकी गली से
बिन दुल्हन के जैसे लौट आये बारात
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