सियासतदां मरते गये मक़बरे बनते गये और एक दिन मुल्क़ का मुल्क़ क़ब्रिस्तां में तब्दील हो गया
Tuesday, March 12, 2013
सुर्खी है आज हर एक अखबार में आदमी का भाव गिर गया बाज़ार में क़ब्र से लाशें चोरी होने लगीं मुर्दे भी कहां महफूज़ रहे मज़ार में
Saturday, March 9, 2013
हमारे केवल चश्मे ‘प्रोग्रेसिव’ हैं चश्मे के पीछे आंख वही पुरानी है यूं तो घर में फिल्टर है, आर.ओ. है पर आंख में वही गंदा पानी है
Wednesday, March 6, 2013
मुझे वक़्त नहीं लगता किसी का बन जाने में
तुम्हें देर नहीं लगती किसी को अपना बनाने में
‘प्यार में दिखाई नहीं देता’ सब कहने की बातें हैं
मुहब्बत में है लज़्ज़त बेशुमार
अंधा बन जाने में
Sunday, March 3, 2013
बहुत शौक़ था इन आंखो को रोशनी का लो जलता हुआ अपना आशियां देख लो ज़िंदगी आने का वादा कर कहां रुखसत हुई कैसे होती हैं इंतज़ार में आंख पत्थर देख लो जिस उम्मीद में थमी थी सांस लो वो भी खत्म हुई नामावर कसम खा सारे खत वापस दे गया ऐसा कोई पता ही नहीं शहर में यक़ीं न होतो खुद जा कर देख लो
तुम्ही कहो अब कैसे आयें लब पर गीत
प्यार के मुहब्बत की बाज़ी जीती मैंने खुद को हार के
सोने के धोखे में पीतल ले आए दोस्तो ! कभी हमसफ़र, कभी रहनुमा, कभी महबूब दुश्मन कितनी सूरतें बदल के आए दोस्तो ! मैं उम्र भर उसका इंतज़ार करता रह गया वो जनाज़े पे भी दबे पाँव संभल के आए दोस्तो ! सोने के धोखे में हम तो पीतल ले आए दोस्तो !
मतलबी मुझे कहता है वो शीरीं-लब किन लबों से करूं उसकी मुखालफत अब