Wednesday, December 26, 2012

मुझे जिस बात का डर था लो वही बात हो गयी
वो मुस्करा दिया, मेरी शिकायत न जाने कहां खो गयी
ये सताने का हुनर है तुम बाज़ी जीत पाओ ये मुमक़िन नहीं
तारीख़ गवाह है, यहाँ दो-चार चालों में सब को मात हो गयी

Tuesday, December 18, 2012

किसी के ख़त छोड़ आये पुराने घर में
हम आ गये, ज़िंदग़ी छोड़ आये पुराने घर में
यूँ हैरत से न देखो  मुझे दोस्तो  -2
मैं वही हूं, बस जवानी छोड़ आये पुराने घर में

Saturday, December 15, 2012

पी के न बहकने की कसम मैंने निभा दी है साक़ी
भटके हुए शेख को मयखाने की डगर दिखा दी है साक़ी
रात भर मैं सो न सका जिस एक बात को ले कर
सुबह होते होते तुमने दुनियां को बता दी है साक़ी

Saturday, December 1, 2012


मैं अकेला कब था इस रहगुजर में

मेरी बरबादियों का गवाह तू भी है