हास्य
कनस्तर भर भर ‘शक्तिप्रास’ खाया है
तब कहीं जाकर ये होश आया है
सब फिज़ूल, सब पैसा जाया है
किसी को न आनी थी, न आई
बेचने वाले को सारी शक्ति सारा पैसा आया है
मुझे पहले से ही था ये धड़का
फिर भी बाल्टी भर भर ‘डेडोरेंट’ छिड़का
पता नहीं क्या कमी, कहाँ ग़लतियां हो गयीं
लड़की तो एक नहीं आई, मक्खियाँ-मक्खियाँ हो गईं