तुम्हें पाने का सपना सच क्यों न हुआ ?
सुबह-सुबह का था, फिर सच क्यों न हुआ ?
सुनते हैं ज़िंदगी हर कदम जुआ है !
महज़ एक बाजी जीतने का सपना सच क्यों न हुआ
सुबह-सुबह का था, फिर सच क्यों न हुआ ?
सुनते हैं ज़िंदगी हर कदम जुआ है !
महज़ एक बाजी जीतने का सपना सच क्यों न हुआ
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