Friday, April 20, 2012

घड़ी

अभी कुछ साल पहले तक लोग आपसे

गली में, राहों में, बाज़ार में, चौराहों पे

अक्सर वक़्त पूछ लिया करते थे

आप खुशी खुशी बताते थे, आप पर थी घड़ी

तब कम लोगों पर हुआ करती थी‌ घड़ी

फिर हमनें तरक्की करी और खूब तरक्की की

एक-एक घर में हो गयीं दर्ज़नों घड़ी

बड़े-बड़े डायल वाली, खूबसूरत घड़ी

एक से एक महंगी घड़ी

दिन, तारीख, अमावस, पूर्णमासी बताने वाली घड़ी

हीरे-सोने से जड़ी घड़ी

अब सस्ती हो गयीं घड़ी

किलो के हिसाब से फुटपाथ पर बिकने लगी घड़ी

ज़िंदग़ी की और जिन्स की तरह   

आपके मूड, आपकी ड्रेस और पार्टी थीम से

मैचिंग हो गयी घड़ी

अब लोग आपसे सड़क चलते वक़्त क्या हुआ है ?’

नहीं पूछते

अब किसी के पास इतना वक़्त नहीं कि आपसे

वक़्त पूछ कर अपना वक़्त बरबाद करे

उसकी कार में है घड़ी

उसके मोबायल मे है घड़ी

उसके लैपटॉप में है घड़ी

उसके पैन में है घड़ी

उसके टी.वी. के हर चैनल में घड़ी

हर कमरे में घड़ी

ये आई है कैसी घड़ी

अब हैं हमारे-तुम्हारे हरेक के पास ढेर सारी घड़ी

नहीं है तो बस अपने लिये, न अपनों के लिये

दो- चार घड़ी
उम्र काट दी हमनें इसी हसरत में
वो मिलने आयेंगे पहली फुरसत में
उन्हें फुरसत न मिली, हमारी चाहत न मिटी
अनबुझ प्यास आयी मेरी किस्मत में

Thursday, April 5, 2012

इक तरफा मुहब्बत में कोई हम सा न पाओगे

हमने कुल ज़माने से मुहब्बत की है

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अब जीने के यही कुछ असबाब हैं

मेरे सिरहाने तेरे कुछ ख्वाब हैं

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गँवा के खुद को, तुझे पाया है

तब जाकर कहीं होश आया है

क्या कुफ़्र ? और क्या है इबादत ?

ये कब कोई जान पाया है ?

तुम महफ़ूज रहो अपनी

रिवाज़ों की दुनिया में

यादें, दर्द, आँसू, ज़ख्म

जीने को मेरे पास बहुत सरमाया है