Monday, August 8, 2011

PAPA MAT MARO! (PAPA DON’T KILL ME!)

(On 16th May 1994 Times of India, Delhi, reported these last words of a helpless teenaged girl killed by her step father because of his inability to marry her off due to dowry demands way beyond his means)

Oh Papa!
Dear Papa
Mat maro please!
Is it just a far cry?
However far it may be
Nonetheless it is a cry
From your own daughter
Nay step daughter
Papa what mistake is mine
If I am your step daughter
I have always loved you as
My, my own dear Papa
So much so I don’t even know the
Meaning of the word ‘step’
I have always longed for you
I have always looked up to you as my
Darling Papa
Where have I erred in my
Being your daughter
What would you get by killing me?
None of your miseries are due to me
Nor are they even remotely attributable to me
But Papa here I am to share
Your griefs as best and as much
A teenaged daughter can
Papa I love you
As much as I love my mom
I don’t want to ever ever get married
If it burdens you
I want my Papa to be happy, gregarious and
Even proud of his daughter
Oh Papa! Mat maro please.

1 comment:

  1. I read a poem, just befitting this incident, on a blog navin-2010.blogspot.com

    I would like to put the same here ...

    मा, मुजे मार ही डाल.....

    प्रथम खंड : ‘बेटी’ है, गर्भपरिक्षण मे पाया गया
    मा-बाप(!)ने गर्भपात का निश्चय किया.


    बेटी हु,

    तो क्या इस दुनिया मे आ नहि शकती?
    माता-पिता का प्यार पा नहि शकती?,
    दोष मेरा क्या है अगर मै लडका नही
    क्या मै तेरी इच्छा का फल नही?,
    मै तेरे ही बाग का फूल, मा मुजे मत मार.

    गोदमे तेरी खेलुंगी तेरी गुडिया बनकर
    किलकिलाहट से भर दुंगी तेरा ये घर,
    तेरा ही रूप, मै तेरी ही परछाई हु
    दामन मे अपने तुजे ही समेटके लाइ हु,
    मै हु तेरा ही अंश, मा मुजे मत मार.

    कह्ते है मां तो इश्वरका रूप होती है
    और मुजसे ही तो मां बनती है,
    अगर मुजे ही नही अपनाओगे
    तो इश्वर को कहा से पाओगे?,
    मै इश का वरदान, मा मुजे मत मार.

    चुपचाप सब सह लुंगी मुजे जीने दे
    जिवनकी एक सांस मुजे भी लेने दे,
    कुदरतने बनायी है ये धरती सबके लिये
    फिर मेरे साथ ये नाइंसाफी किस लिये?,
    मै एक नन्ही सी जान, मा मुजे मत मार.

    मा, तु भी तो बेटी बनकर ही आइ थी
    ममता और करुणा साथ मे ही लाइ थी,
    आज इतनी निर्दयी कैसे हो गइ?
    नारी ही नारी की दुश्मन हो गइ?,
    मै तो दो घर की ‘शान’, मा मुजे मत मार.


    दुसरा खंड : ‘बेटी’की काकलूदी सुनी नही गई
    गर्भपातकी सारी तैयारिया हो गई.

    अफसोस, मनुष्य के गर्भ मे आ गइ
    जिंदगी से पहले ही मौत गले लगा गइ,
    काश, अगला जन्म कोइ पशुका मिले
    जिंदगी जीनेका एक मौका तो मिले,
    मै अबला और लाचार, मा मुजे मत मार.

    शायद अच्छा ही होगा अगर मर जाउंगी
    चलो इस स्वार्थी दुनिया से तो बच जाउंगी,
    मुझे किसीकी मा, बहन, बीवी नही बनना
    ’बेटो’ के लिये बनी दुनिया मे ‘बेटी’ नही बनना,
    नही बनना मुझे इंसान, मा मुजे ...........

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