Thursday, May 26, 2011

तेरे सीने से न सही

मेरे सीने से सही

मगर दिन-रात

उठता है धुआँ.


तक़दीर हम दोनों की

एक सी हमदम

मेरी खुशी धुआँ

तेरा ग़म धुआँ.


ये नसीब का सारा

खेल है ऐ दोस्त

अमीर मरे तो धुआँ

गरीब जिये तो धुआँ.


पिया क्या सिधारे परदेस

रात भर रोती रहीं आँखें

गीली लकड़ियाँ देर तक

देती रहीं धुआँ.


अश्कबार नज़रें यूँ भी

ना देख पातीं

मंजर तेरी जुदाई का

शुक्र है बन के गुबार,दरमियाँ आ गया धुआँ.


इश्क़ की थाह पा सके

ज़माने के बस की बात नहीं

जहाँ तक नज़र जायेगी

पाओगे मुहब्बतों का धुआँ.

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