हम तो भूल जाने लगे थे
खोई दुनियां में आने लगे थे
अभी लोगों को पहचानने ही लगे थे
कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया
खुद से मुलाकात हो रही थी
दिन-तारीख की बात हो रही थी
घर के आईने से नज़र चार हो रही थी
कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया
ज़िस्म को भूख की गिज़ा लगने लगी थी
आँख को सूरज की आदत पड़ने लगी थी
दीगर इलाकोंमें आमदोरफ्त बढ़ने लगीथी
कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया
गज़ल का दीवान अभी ट्रंक में रखा ही था
रोजगार-ए-मुहब्बत का नफा नुकसान परखा ही था
अभी मरहमे दिल का नुस्खा सयाने ने फूँका ही था
कि उसने फिर ताबीज़ कर दिया