ravikikavitayen
Thursday, April 11, 2019
वो मेरी बेगुनाही से मुतमईन हो चला था
गुनाहगार साबित करगया मेराबारहा सफाईयां देना
मुद्दत हुई शहर में अब कहीं दिखता ही नहीं
वो एक शख्स जिसने रकम ली थी उधार में
Wednesday, February 27, 2019
देख तेरा पर्दा हमने कहाँ कहाँ न रखा
पूछते हैं जब भी लोग "मुहब्बत की है ?"
हम भी मुस्करा के कह देते हैं
" ये मर्ज़ हमने न रखा "
मुहब्बत जो निभाते हैं वो
जान-ए-मन कैसे होते हैं
आप अगर दोस्त हैं तो
हुज़ूर दुश्मन कैसे होते हैं
Monday, February 4, 2019
तुमसे इश्क़ का सोचा ही था
नींद
,
चैन
,
नेकनामी
,
भूख,
दिल
सब चोरी हो गये
मेरे हक़ में गवाह नहीं एक
सुबह
,
शा
म
,
फिज़ा
,
फूल
सब गोरी तेरे हो गये
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